Monday, September 6, 2010

मनुष्य ही प्रार्थना करते हैं पशु नहीं, इसीलिए जो मनुष्य प्रार्थना नहीं करते वह देखने में तो मनुष्य ज़रूर हैं परन्तु अंदर से पशुओ के ही भांति जड़ और अज्ञानी हैं। प्रार्थना मनुष्य जीवन का उद्देश्य ही नहीं कर्तव्य भी हैं, प्रार्थना करने से मनुष्य को ईश्वर के प्रेम का असीम आनंद प्राप्त होता है। यदि प्रार्थना करते समय किसी के लिए मन में द्वेष उत्पन्न हो तो प्रार्थना करने से पूर्व उसे क्षमा कर देना चाहिए क्योंकि दूषित मन से की गयी प्रार्थना ईश्वर को स्वीकार नहीं होती। संसार के समस्त प्राणी आपकी तरह ईश्वर के ही पुत्र हैं इसीलिए सबसे प्रेम करो यही सच्ची भक्ति (प्रार्थना) हैं।

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