Sunday, July 31, 2011
Friday, July 29, 2011
Thursday, July 28, 2011
Monday, July 25, 2011
माता-पिता हर घर में हो ऐसी मेरी प्रार्थना है ईश्वर से क्योंकि जिस घर में माता-पिता रहते हैं वहाँ ईश्वर भी स्वयं मौज़ूद होते हैं। माता-पिता हर परिस्थिति में संतान का भला ही चाहते हैं एवं ईश्वर के सामान ही उनके द्वारा दिया गया प्यार-दुलार अतुलनीय हैं। इस दुनिया में आने पर जो हमें अपने खून-दूध से सींचते है, बिना कुछ इच्छा किए अपना सब-कुछ हम पर न्यौछावर कर देते हैं और सदा ही हमारे हितैषी रहते हैं वो तो सिर्फ माता-पिता ही हैं। मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद है परमात्मा को जिन्होंने हमें माता-पिता(अपना स्वरूप) प्रदान किए।
Friday, July 22, 2011
Thursday, July 21, 2011
Wednesday, July 20, 2011
Tuesday, July 19, 2011
यदि जीवन में कभी भी ऐसा महसूस हो कि आप नाकामयाब हो रहें हैं और कोई भी रास्ता न मिल रहा हो तो अपने सबसे सच्चे एवं अच्छे मित्र ईश्वर को स्मरण कीजिए, कोई न कोई रास्ता आपको अवश्य मिलेगा, केवल नाकामयाब होने पर ही नहीं हर पल सच्चे हृदय से उस परमपिता को जरूर याद करें जिन्होंने यह जीवन और उससे जुड़े सभी अनुभव हमें प्रदान किए हैं।
Monday, July 18, 2011
Friday, July 15, 2011
Thursday, July 14, 2011
Wednesday, July 13, 2011
Tuesday, July 12, 2011
Monday, July 11, 2011
Friday, July 8, 2011
"गायत्री भगवान सूर्यनारायण का आवाहन मंत्र है।गायत्री मंत्र का उच्चारण होते ही जप करने वाले के ऊपर प्रकाश की एक शक्तिशाली झलक स्थूल सूर्य से आती है। जिस प्रकार सूर्य की किरणो से इन्द्रधनुष बनता है एवं अपने मनमोहक सात रंगो से सबका मन मोह लेता है,उसी प्रकार गायत्री मन्त्र के जप से सूर्य से सात किरणें उत्पन्न होती है,जिनका शुभप्रभाव अनगिनत जीवो पर पड़ता है ।
Thursday, July 7, 2011
Wednesday, July 6, 2011
ईश्वर ने यह दुनिया बड़ी ही विचित्र बनाई हैं, इसमें भांति-भांति के लोग बनाए हैं, परन्तु सबको समान दॄष्टि से ही बनाया है, किसी से भी किसी तरह का पक्षपात नहीं किया क्योंकि परमपिता की नज़र में सबका समान स्थान है, कोई भी बड़ा या छोटा नहीं हैं तो फिर हम मनुष्य जो प्रभू की सर्वोतम कृति है, इस जात-पात के जंजाल में क्यों फँसे बैठे हैं?
Monday, July 4, 2011
आपको जब कभी ऐसा लगे कि आपको किसी ने आवाज़ दी हैं परन्तु यह पता न चले कि किसने पुकारा हैं तो निश्चित रूप से समझ लीजिए कि यह अपनी ही अंतरात्मा की पुकार है जो मनुष्य को सचेत कर रही हैं कि यह बहूमूल्य जीवन धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा हैं और यदि ऐसा ही चलता रहा तो परमपिता का यह अमूल्य अनुदान व्यर्थ न चला जाए।
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