मानव शरीर की तरह ही मानव मस्तिष्क भी भगवान ने अद्भुत घड़ा है जिसे जैसा चाहो सिखा लो, जैसे विचार चाहे रख लो, जरूरत हैं उसे इस प्रकार सिखाने की कि केवल अच्छे विचार ही उसमें ओत-प्रोत हों और बुरे विचार स्वयं ही लुप्त हो जाएँ जो तभी मुमकिन हैं यदि विचारो में केवल ईश्वरीय शक्ति का ही निवास हो।
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