God has given us everything in Life, can we even repay a single bit of it?
Yes we can by Thanking Him every second of our life.
But even that is very less as compared to the mercy and blessings The Almighty showers on us all the time by providing us all that we need without asking!
Friday, May 28, 2010
Thursday, May 27, 2010
जीवन में निराशा के कितने ही काले बादल क्यों न छा जाए, परन्तु कहीं न कहीं आशा की नन्ही किरण अवश्य टिमटिमाती रहती हैं, मनुष्य की सहायता करने भगवान किसी न किसी रूप में जरूर आते हैं।परन्तु परमात्मा भी उन्ही की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं, यानि जो सब रास्ते बंद होने पर भी हार नहीं मानते एवं निरन्तर ईश्वर पर भरोसा रख संघर्ष करते रहते हैं।
Wednesday, May 26, 2010
Tuesday, May 25, 2010
Monday, May 24, 2010
हर मनुष्य के अतःकरण के भीतर ईश्वर विद्यमान हैं एवं इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि जो भी व्यक्ति गल्त काम करने लगता हैं उसे उसका अतःकरण अवश्य धिक्कारता हैं क्योंकि वह उसकी आत्मा की पुकार होती हैं और आत्मा परमात्मा का ही तो स्वरूप हैं, तो जब भी किसी काम में दुविधा हो तो अपने अतःकरण की पुकार अवश्य सुनें एवं उसका अनुसरण करें।
Friday, May 21, 2010
जिस तरह ईश्वर स्वयं सबसे सुन्दर हैं उसी प्रकार उनकी बनाई कोई भी कृति कुरूप कैसे हो सकती हैं, अर्थात इस संसार में कोई व्यक्ति या पदार्थ असुंदर नहीं हैं, यह तो हमारा दृष्टिकोण हैं जो किसी भी वस्तु को सुंदर अथवा कुरूप बना देता हैं। सृष्टा ने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अतिसुंदर एवं स्मपूर्ण रचा हैं, अपनी किसी भी कृति को अपूर्ण छोड़े बिना।
Thursday, May 20, 2010
Tuesday, May 18, 2010
Monday, May 17, 2010
Friday, May 14, 2010
Thursday, May 13, 2010
मनुष्य के जीवन पर प्रथम अधिकार भगवान हैं, द्वितिय मात्रभूमि का, तीसरा माता-पिता एवं गुरू का एवं फिर स्वयं का, क्योंकि भगवान परम पिता हैं, उन्होंने हमें यह बहुमूल्य मानव जीवन प्रदान किया हैं, एवं मातृभूमि ने अपने उपजे अन्न से हमारा पोषण किया हैं, इस धरती पर हमें जन्म देने वाले माता-पिता के भी हम ऋणी हैं एवं गुरू जिन्होंने हमारा मार्ग प्रशस्त किया हैं, हमें ज्ञान प्रदान किया है, उनका भी हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार हैं।
Wednesday, May 12, 2010
सब कुछ तो इस परम पिता परमेश्वर ने बनाया हैं, उसका बँटवारा करना न केवल बेवकूफी हैं अपितु प्रकति के विरूध्द भी हैं, इस सम्पूर्ण विश्व वैभव की उपयोगिता इसी में हैं कि सब मिल-बाँट कर खाएँ। संसार सब का हैं। अतः जितना अपने लिए आवश्क हैं उतना उपयोग में लाएँ एवं शेष दूसरों के लिए छोड़ दे इसी में दूरदर्शिता है।
Tuesday, May 11, 2010
Monday, May 10, 2010
Thursday, May 6, 2010
Wednesday, May 5, 2010
Tuesday, May 4, 2010
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