Wednesday, June 30, 2010
केवल अपने लिए जीना, खाना-खेलना और मर जाना, मानव जीवन का निकृष्टतम दुरूपयोग हैं, ऐसा व्यक्ति भले ही स्वयं को सफ़ल माने परन्तु वह असफ़ल ही माना जाएगा।क्योंकि भगवान ने इस सृष्टि को इस प्रकार रचा हैं कि सभी एक दूसरे का परोपकार करें, गाय माता दूध देकर हमारा पोषण करतीं हैं, बादल समुद्र से जल लाते हैं एवं प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं, सूर्य और चन्द्रमा समय पर उग इस धरती पर नवजीवन का संचार करते हैं, हो कहीं अपनी सिनग्ध चाँदनी से ठंडक प्रदान करते हैं, यानि छोटे से छोटा कीट-पंतग भी परोपकार का व्रत लिए जीवन जीता हैं तो क्या मनुष्य जो ईश्वर की सर्वोतम रचना हैं, उसे क्या स्वार्थपरकता शोभा देती हैं स्वयं विचार करें।
Tuesday, June 29, 2010
Monday, June 28, 2010
Friday, June 25, 2010
Thursday, June 24, 2010
Wednesday, June 23, 2010
Tuesday, June 22, 2010
ईश्वर ने मनुष्य को अपार संपदाओं से भरपूर जीवन दिया हैं परन्तु उसे दिया हैं एक-एक खंड में गिन-गिन कर। नया खंड देने से पहले पुराने का हिसाब-किताब हमें उन्हें देना हैं, हमारे दानी मित्र भगवान तब बहुत निराश होते हैं जब हम उनके मूल्यवान अनुदान की अवज्ञा करते हैं, इसलिए हर नए दिन का महत्व समझें क्योंकि जीवन का हर प्रभात हमारें लिए अभिनव उपहार लाता हैं एवम् चाहता हैं कि हम उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें और उससे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें।
Monday, June 21, 2010
Saturday, June 19, 2010
उनकी असीम अनुकम्पा हैं कि परमपिता ने आपको हमारा पिता निर्धारित किया,परमपिता ने दिया हैं हमें अद्भुत वरदान आपके रूप में, कभी न मुश्किले झेली हमने आपके कारण, आपके कारण ही यह जग देखने का सौभाग्य मिला, एक जीवन तो कम हैं आपके नमन के लिए, प्रार्थना करती हूँ हे भगवान सदा दें परम पिता आपके प्रेम एवं दुलार से परिपूर्ण यह वरदान और आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बनाए रखें।
Friday, June 18, 2010
रामचरितमानस में आता हैं_
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।
Thursday, June 17, 2010
Wednesday, June 16, 2010
Tuesday, June 15, 2010
Monday, June 14, 2010
God is Omnipresent everywhere and anywhere, He is present in the smallest or biggest creature of the world, He is present in every flower and the tiniest of plant,be it a reptile or a fish. So be very kind and considerate towards all his creations as He is present in all and see them all Equally. So a service towards His creations is a service rendered to Him.
Friday, June 11, 2010
Thursday, June 10, 2010
मनुष्य जीवन एक वन के समान हैं जहाँ सुरम्य एवं व्यवस्थित दिखने वाली पगडंडियाँ भी हैं एवं कंटीला एवं बंजर रास्ता भी, अकसर लोग आसान पगडंडियों के लालच में सही मार्ग भूल जाते हैं एवं वन रूपी जीवन पथ पर भटक जाते हैं, जीवन वन का राजमार्ग सदाचार और धर्म हैं, इस मार्ग पर चलकर भले ही मनुष्य को मुश्किलो का सामना करना पड़े परन्तु अंत में उसकी विजय निश्चित होती हैं एवं सुख और शांति का कारण बनती हैं।
Wednesday, June 9, 2010
Tuesday, June 8, 2010
भगवान श्री कॄष्ण ने गीता में कहा हैं कि हम सभी को अपना जीवन बाँसुरी के समान बनाना चाहिए, बाँसुरी जिस प्रकार बिना बुलाए बोलती नहीं, उसी प्रकार हमें भी मौन का ही अनुसरण करना चाहिए, बाँसुरी की तरह ही जब भी मुख खोले तो सदा मीठा ही बोले यानि "ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करें आपहु शीतल होय",एवं जिस प्रकार बाँसुरी में कोई गाँठ नहीं होती, उसी प्रकार किसी से मतभेद होने की स्थिति में हम मन में उस व्यक्ति के प्रति कोई गाँठ न बाँध ले इस बात का हमें विषेश ध्यान रखना चाहिए।
Monday, June 7, 2010
अकसर देखा जाता हैं कि जो चीज़ अपने पास नहीं हैं उसे प्राप्त करने की होड़ मनुष्य में सदा बनी रहती हैं, परन्तु वास्तव में तो जो परमात्मा से मिला हुआ हैं वो इतना अधिक हैं कि उसका सही और संतुलित उपयोग करके प्रगति के पथ पर बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता हैं, अतः जो अपने पास हैं उसी में संतुष्ट रहें एवम् उसका पूर्णतः सदुपयोग करें।
Friday, June 4, 2010
Thursday, June 3, 2010
Tuesday, June 1, 2010
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