रामचरितमानस में आता हैं_
"जुग विधि ज्वर मत्सर अबिबेका।"
भौतिक ज्वर की तरह आध्यात्मिक ज्वर भी अनेक तरह के हैं। जैसे यौवन ज्वर, काम ज्वर,लोभ ज्वर,मोह ज्वर आदि। ज्वर के लक्षण हैं_ अंग की शिथिलता, मुँह सूख जाना, शक्ति की क्षीणता, पसीना आने लगना, देह में दाह जलन होना। ज्वर शब्द का अर्थ हैं_
"ज्वरति जीर्णो भवति अनेनेति ज्वरः।"
यानि आज का चिकित्सा विज्ञान इन सबके विषय में अल्प ज्ञान ही रखता है। कितना गहन हैं आध्यात्मिक चिकित्सा विज्ञान, यह इस वर्णन से स्पष्ट हैं।
गीता में इसी ज्वर से ग्रसित हो अपने लक्षणों की चर्चा अर्जुन, श्रीकृष्ण से करते हैं,इसे विषाद की स्थिति कहते हैं।
Friday, June 18, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment