Tuesday, August 31, 2010
मनोबल इंसान का प्रधान बल हैं जिसके बिना किसी भी श्रेत्र में प्रगति करना नामुमकिन है, क्योंकि जिस व्यक्ति के मनोबल की कमी हैं वह निर्बल हैं और निर्बल व्यक्ति भी पापी की ही तरह सुख से जीने का अधिकारी नहीं इसीलिए सर्वप्रथम शक्ति का संचय करो तभी अपना एवं समाज का हित संभव होगा। श्रुति में भी कहा गया हैं "बलमुपास्व" अर्थात बल की उपासना करो तभी पाप की वृद्धि से बच पाओगे।
Friday, August 27, 2010
Some people live for others and to make them happy, some love to tease others and to make them unhappy again and again they enjoy to envy others and but they do not realise that they are themselves making their sack very heavy for the next birth and will not be able to repent it even,so please if you can't make others happy don't make them cry so that they are not forced to curse you from heart.
Wednesday, August 25, 2010
There are many people in this world who live for there own sake,such people are mere animals and not anything more than that,they are whiling away their human birth, Some live for others, they still are making some part of their lives worthwhile,while a few only live to help others and to make the lives of needy fulfil their dreams,such people are in true sense the messengers of God and I'm very lucky and proud to say that I know such people and those are my "Parents" Yes they are truly the messengers of God and His representatives for me in this world .Thanks a ton Almighty to bless me with such loving, caring and the best of all Parents.
Monday, August 23, 2010
Thursday, August 19, 2010
रोटी के लिए मरते खपते रहना मनुष्य का नहीं तुच्छ जीव-जंतुओ का कार्य हैं, इसीलिए इस अति दुर्लभ मानव शरीर को सार्थक बनाने के लिए इस प्रकार का कार्य करें जिसके लिए ईश्वर ने हमें इस धरती पर अवतरित किया है,क्योंकि यदि हम इस सही मार्ग पर नहीं चलेगें तो यह बहूमूल्य जीवन व्यर्थ हो जाएगा और सिवा पछतावे के हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा।
Wednesday, August 18, 2010
हम स्थूल नहीं सूक्षम जीवन हैं जो अज़र एवं अमर हैं, हमारा सीधा संबंध उस परम तत्व से हैं परन्तु अज्ञान के अंधकार के कारण हम इस परम सत्य को देख नहीं पाते इसी कारण हम गहन निद्रा में हैं और हमें आवश्यकता हैं इस अंधकार से उभरने की और प्रकाश की ओर बढ़ने की ताकि हम उस परम प्रकाश से साक्षातकार कर सकें और भव सागर से पार हो जाएँ।
Tuesday, August 17, 2010
अपने को सुसंपन्न वही व्यक्ति बना सकता हैं जिसमें कठोर परिश्रम करने की क्षमता हो और जिसने समय का एक-एक क्षण सुचारू रूप से व्यतीत किया हो। इतिहास गवाह हैं कि संसार में एक भी उदाहरण एसा नहीं मिलेगा जहाँ सफलता श्रमशीलता के बगैर मिली हो इसलिए सफलता उन्हीं को प्राप्त होती हैं जो निरंतर उसके लिए संघर्ष करते हैं।
Monday, August 16, 2010
पिछले जन्म के अच्छे कर्मो के कारण ही मनुष्य को अति दुर्लभ मानव शरीर ईश्वर से प्राप्त होता है तो इस मानव शरीर का सदुपयोग करना बहुत ही आवश्यक हैं अन्यथा यह सवर्णिम अवसर हाथ से निकल जाएगा और पछतावे के सिवा हमारे पास कुछ शेष नहीं रह जाएगा, तो इस मौके का पूर्ण रूप से सदुपयोग कीजिए एवं आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने के लिए अग्रसर रहिए।
Friday, August 13, 2010
Thursday, August 12, 2010
God loves you ! He is the Creator, the Preserver and Destroyer. He creates each and every thing in this world, preserves it for its worth and finally it is destroyed. Thus we should know that we are not here forever we have to leave someday or other so help others and make your life as meaningful as it can be!
Wednesday, August 11, 2010
Tuesday, August 10, 2010
जीवन का अभिप्राय हैं दिव्य प्रेम- प्रेम हर उस प्राणी से, हर फूल-पत्ते से, हरेक जानवर से चाहे वो कीट-पंतग ही क्यों न हो और ईश्वर के ही बनाए हर एक मनुष्य से चाहे वह किसी भी जाति, सामप्रदाय, मज़हब या देश का क्यों न हो, केवल हर जगह, हर प्राणी में उस परम पिता परमेश्वर की ही कल्पना कीजिए तभी वो प्रेम दिव्य प्रेम बन पाएगा।
Monday, August 9, 2010
Friday, August 6, 2010
ईश्वर को सदैव सत्कर्म करने वाले मनुष्य ही प्रिय हैं, ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य की रचना इसी उद्देश्य से की हैं कि वह यह समझे कि "अहम् ब्रह्म,द्वितिय न अस्ति" अर्थात मनुष्य स्वयं कोई और नहीं ब्रह्म ही हैं और यह बात वो तभी समझ सकता हैं जब वह प्रमाद, आलस्य और अज्ञानता का त्याग कर जागरण का वरण करें और प्रकाश एवं पावनता की ओर अग्रसर हो, इसी प्रकार वह जीवत्व से बढ़ता हुआ ईश्वरत्व तक पहुँच सकता हैं। यह सभी कुछ तभी संभव हैं जब मनुष्य स्वयं को परमपिता परमात्मा का पुत्र एवं प्रतिनिधि अनुभव करे।
Thursday, August 5, 2010
Wednesday, August 4, 2010
Tuesday, August 3, 2010
मनुष्य की पूर्णता का चिन्ह यह हैं कि उसमें कितनी उत्कृष्ट भावनाओं का विकास हुआ हैं, मनुष्य उस दिन सही मायने में पूर्णता की परिधि में प्रवेश कर जाएगा जिस दिन उसका स्वार्थ परमार्थ बन जाएगा, उसके अधिकार कर्तव्य बन जाएँगे,उसका अपना सुख, दूसरे के सुख से संतुष्ट हो जाएगा एवं उसकी आत्मा परमात्मा में लीन हो जाएगी।
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