Wednesday, April 14, 2010

यदि अति दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त करके भी हम लक्ष्यहीन जीवन व्यतीत करते हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा, हमें अपने कर्त्तव्य एवं स्वरूप को समझ अपने सच्चे स्वरूप सच्चिदानंद की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

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