हमारे सबसे नज़दीक, सबसे करीब, यदि कोई हैं तो वह हैं ईश्वर। हम ईश्वर के बनें एवं उन्हीं के लिए जिएँ, स्वयं को कामनाओ से रिक्त कर दें, एवं ईश्वर की इच्छा और प्रेरणा के आधार पर स्वयं को आत्मसमर्पित कर दें तो स्वयं को परम पिता की कृपा अनुकम्पा से ओत प्रोत पाएँगें।
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