Thursday, March 31, 2011
माता-पिता हर घर में हो ऐसी मेरी प्रार्थना है ईश्वर से क्योंकि जिस घर में माता-पिता रहते हैं वहाँ ईश्वर भी स्वयं मौज़ूद होते हैं। माता-पिता हर परिस्थिति में संतान का भला ही चाहते हैं एवं ईश्वर के सामान ही उनके द्वारा दिया गया प्यार-दुलार अतुलनीय हैं। इस दुनिया में आने पर जो हमें अपने खून-दूध से सींचते है, बिना कुछ इच्छा किए अपना सब-कुछ हम पर न्यौछावर कर देते हैं और सदा ही हमारे हितैषी रहते हैं वो तो सिर्फ माता-पिता ही हैं। मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद है परमात्मा को जिन्होंने हमें माता-पिता(अपना स्वरूप) प्रदान किए।
Wednesday, March 30, 2011
Tuesday, March 29, 2011
Monday, March 28, 2011
Friday, March 25, 2011
Thursday, March 24, 2011
जिस प्रभू ने हमें सभी कुछ दिया है वो हमें स्वयं दिखाई नहीं देते परन्तु उनका स्वरूप हम सृष्टि में सब ओर देख सकते हैं, जिस ओर भी प्रेम और शांति दिखे समझ लीजिए ईश्वर वहीं निवास करते हैं, जहाँ मौन में भी सकून है मेरे परमात्मा वहीं रहते हैं। हर तरफ परमात्मा को ही ढूढ़े और उन्हीं का ही विचार करें, वह तो हरेक के अतःकरण में विचरते हैं।
Wednesday, March 23, 2011
Tuesday, March 22, 2011
Monday, March 21, 2011
इस सम्पूर्ण सृष्टि में जहाँ तक भी आपकी नज़र जाती है सब ओर उस सर्वव्याप्यी ईश्वर का आस्तित्व फैला हुआ दिखाई देता है, ईश्वर ने इस तरह की सृष्टि बनाई है जिसमें सभी कुछ सुंदर एवं सम्मोहित करने वाला है, ज़रा सोचिए इस सृष्टि को रचने वाले परमात्मा में ही यह सारा सौन्दर्य समाया है तभी तो यह सुन्दरता हमें दृष्टिगोचर होती है।
Friday, March 18, 2011
जीवन भगवान की अराधना का नाम है। जीवन तो सभी जीते हैं परन्तु हर समय ईश्वर को ध्यान में रख विरले लोग ही जीवन जीते है, जीवन जीने का सही ढ़ग भी वो ही लोग जानते है जो कि यह बात समझते हैं कि ईश्वर को वो लोग प्यारे हैं जो आपना कर्म भगवान की पूजा मान कर करते हैं और कर्म करते हुए सदा भगवान को याद रखते है, इस प्रकार कर्म करने से उसमें त्रुटि होने की आंशका नहीं रह जाती।
Thursday, March 17, 2011
Wednesday, March 16, 2011
भोग अज्ञान के मार्ग की ओर ले जाता है और पलायन अपने कर्तव्य से हटाता है इसीलिए न तो पलायन कीजिए और न ही भोग के मार्ग पर जाइए, अपने को ईश्वर का निमित्त मात्र जानकर केवल अपने कर्तव्य की पूर्ति करते जाइए और बाकी सब ईश्वर के हाथ छोड़ दीजिए और भगवान पर भरोसा रखिए कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। यही जीवन जीने का सही ढ़ग है।
Tuesday, March 15, 2011
ईश्वर आपके सबसे सच्चे और विश्वसनीय मित्र हैं, यदि आप यह बात समझ ले तो कभी स्वयं को अकेला नहीं पाएँगे, आपने जब इस धरती पर जन्म लिया तो ईश्वर ने आपको बहूमूल्य भेंट के रूप में यह मानव शरीर दिया, इस विश्वास पर कि आप इसका सदुपयोग कर औरों के दुख-तकलीफ दूर करेंगे परन्तु आप केवल माया के जाल में फँस के रह गए, बाकी सब कुछ बिसार दिया, परन्तु आप अपने सबसे प्रिय मित्र और उनके प्रति अपने कर्तव्य को न बिसरा कर उन्हें पूरा करें, नहीं तो जीवन के अंत समय पछताना होगा और बीता वक्त फिर लौट के न आएगा।
Monday, March 14, 2011
ईश्वर जो शांति और प्रेम का अथाह सागर हैं उन्हें जिन्हे आप कुछ दे नहीं सकते और न वह कुछ आपसे चाहते हैं, वह केवल आपको आपका सम्बन्ध जो कि आपका परमपिता से सदैव का है आपको याद कराना चाहते है, ब्रहं-महूर्त में उठ भगवान को याद करें, उस शांत वातावरण में ईश्वर को सच्चे मन से पुकारें, उनकी शक्ति महसूस करें। आप देखेगें कि पहले आपका दिमाग शांत होगा और फिर मन और इस शांति में आप इतनी खुशी महसूस करेंगे जो सारे जहान की दौलत से भी ज्यादा कीमती है। अपने को ईश्वर को सौंप के तो देखिए आपका जीवन ही बदल जाएगा।
Friday, March 11, 2011
आज से ही संकल्प लें कि किसी चीज़ की खव्वाहिश नहीं करेंगे क्योकि यही कामना मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देती उससे उसका देवत्व छीन लेती है और उसे ले जाती है चोरी और झूठ के मार्ग पर और जो धन झूठ या चोरी के मार्ग से अर्जित किया जाता है उससे खरीदे गए अन्न से मन पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा यह बात आप स्वयं ही निश्चित कर सकते हैं।
Thursday, March 10, 2011
जब आप इस दुनिया में आए तो ईश्वर ने आपको जीवन दान दिया, जो भी मिला यहीं से मिला और इसे यहीं छोड़ के दुनिया से विदा लेनी होगी, केवल आपके कर्म ही तो हैं जो आपके साथ जाएँगे और आपका अगला जन्म निर्धारित करेगें तो क्यों न आप अपने कर्म सुधारें जिन्हे आपके साथ जाना है बाकी सब तो यहीं छूट जाना है तो फिर यह संग्रह किसलिए? इच्छाएँ न कभी पूरी होती हैं और न कभी होगीं तो उनके पीछे यह बहूमूल्य ईश्वर की देन को क्यों व्यर्थ गवाएँ निर्णय आपका है?
Wednesday, March 9, 2011
Tuesday, March 8, 2011
Monday, March 7, 2011
Friday, March 4, 2011
Thursday, March 3, 2011
Wednesday, March 2, 2011
Tuesday, March 1, 2011
मनुष्य का शरीर भगवान की बहूमूल्य देन है। इंसान का एक- एक अंग कई कड़ोरो का हैं परन्तु इस पर भी वह भगवान का धन्यवाद नहीं करता बल्कि हमेशा यही चेष्टा करता है कि उसे हर समय भगवान कुछ न कुछ देते ही रहें और इसके लिए ही वह भगवान को रिश्वत भी देता है, परन्तु मनुष्य एक बात भूल जाता है कि उस विश्वविधाता को जो सर्वगुण सम्पन्न और परिपूर्ण है उन्हे वह रिश्वत के बलबूते पर नहीं केवल अपने प्रेम और भक्ति के बलबूते पर प्राप्त कर सकता है। ईश्वर प्राप्ति ही जीवन की उत्कृष्टा है और सर्वोपरि हैं।
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