Tuesday, March 1, 2011
मनुष्य का शरीर भगवान की बहूमूल्य देन है। इंसान का एक- एक अंग कई कड़ोरो का हैं परन्तु इस पर भी वह भगवान का धन्यवाद नहीं करता बल्कि हमेशा यही चेष्टा करता है कि उसे हर समय भगवान कुछ न कुछ देते ही रहें और इसके लिए ही वह भगवान को रिश्वत भी देता है, परन्तु मनुष्य एक बात भूल जाता है कि उस विश्वविधाता को जो सर्वगुण सम्पन्न और परिपूर्ण है उन्हे वह रिश्वत के बलबूते पर नहीं केवल अपने प्रेम और भक्ति के बलबूते पर प्राप्त कर सकता है। ईश्वर प्राप्ति ही जीवन की उत्कृष्टा है और सर्वोपरि हैं।
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