सब तरफ जिस जगह भी आपकी नज़र जाती है सब तरफ ईश्वर ही ईश्वर तो हैं,यह तो आपके देखने का नज़रिया ही है कि आप क्या देखते हैं और कैसे देखते हैं। जो भी व्यक्ति आपके सम्पर्क में आता है उसे अपना ही भाई-बन्धु समझिए और वैसा ही प्रेम दिजिए जैसा किसी अपने को दिया जाता है तभी तो आपको सब में भगवान दॄष्टिगोचर होंगे।
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