Thursday, April 7, 2011
केवल अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीता हैं वो ही मनुष्य है। परमात्मा की बनाई इस पवित्र सृष्टि में सभी ओर पवित्रता और आनन्द व्याप्त है। जो मनुष्य सब ओर इस पवित्रता को अनुभव करता है और ईश्वरीय श्रेष्ठताओं को विकसित एवं प्रचलित करता है, वह देव-दृष्टि धारण करता है और वह देव-कर्म करता हैं।
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