आकाश से ऊँचा कुछ हैं क्या, हाँ मनुष्य की अच्छाई।
जल से पतला कुछ हैं क्या, जी मनुष्य का ज्ञान।
भूमि से भारी कुछ हैं क्या, मनुष्य का पाप।
काजल से काला कुछ हैं क्या, मनुष्य का कंलक।
अग्न से तेज़ क्या है भला, मनुष्य का अंहकार।
Thursday, November 11, 2010
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