भगवान हर जगह जगह हैं परन्तु वह हमें दिखाई नहीं देते, हर कण में व्याप्त हैं परन्तु उनके होने का अहसास हम इस बात से लगा सकते हैं कि हर घर में ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि माता-पिता हर किसी को दिए हैं, बहुत खुशकिस्मत हैं वो बच्चे जिन्हें उनके माता-पिता का प्रेम और दुलार मिला हैं, दुनिया का हर रिश्ता इस प्रेम के आगे फीका हैं क्योंकि जिस तरह माता-पिता हमसे अनन्त प्रेम करते हैं परमपिता भी अपनी हर कृति से स्नेह रखते हैं और अपनी हर संतान की कामना पूरी करते हैं बशर्ते उस मनुष्य ने अपनी कामना के अनुसार कर्म किए हैं।
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान होते हुए भी हमसे अनभिज्ञ हैं और पृथ्वी पर माता-पिता ही उस विधाता की पहचान हैं।" हे परमात्मा मैं आपको आपकी सर्वोतम कृति माता-पिता को रचने के लिए शत्-शत् प्रणाम एवं धन्यवाद करती हूँ।"
Friday, November 19, 2010
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