मनुष्य के जीवन पर सर्वप्रथम अधिकार ईश्वर का होता है, दिव्तिय उस मातृभूमि का जिसमें मनुष्य ने जन्म लिया, तीसरा माता-पिता का जिनकी वजह से यह संसार दिखा और अंतिम स्वयं मनुष्य का खुद पर।
जिस परमपिता ने जीवन जैसा अमूल्य उपहार प्रदान किया वह हर क्षण वंदनीय हैं।
मातृभूमि जिसमें हमारे पोषण के लिए अन्न उपजा उसका उपकार हम कभी नहीं उतार सकते।
माता-पिता जो कुछ भी संतान के लिए करते हैं वह अतुलनीय हैं, उसकी एकमात्र तुलना हैं ईश्वर प्रेम, जिस प्रकार ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते और अपनी सभी संतानो से समभाव से प्रेम करते है, उसी प्रकार माता-पिता अपना दुलार हम पर लुटाते हैं।
अंतिम हक मनुष्य का स्वयं के जीवन पर हैं।
Tuesday, November 23, 2010
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