Monday, January 31, 2011
आत्मशांति कभी भी संसार के किसी भी पदार्थ या सुखों के भोग से संभव नहीं। आत्मशांति तो आत्मा की धरोहर है और वो हर आत्मा के पास है परन्तु उसे जाग्रत करना पड़ता है, आत्मा इस काम में सक्षम भी है केवल ज़रूरत है उसे ईश्वरीय प्रेम और सहारे की जोकि हमें केवल ईश्वर के समीप जाने से ही प्राप्त होगा और ईश्वर तो हर जगह हैं केवल उनसे साक्षातकार करने की इच्छा हमारे मन में होनी चाहिए।
Friday, January 28, 2011
जीवन इस ढ़ग से जिएँ कि आपको मरनोपरान्त भी सब याद रखें क्योंकि अपने लिए केवल रोजी-रोटी का जुगाड़ तो निकृष्ट पशु-पक्षी भी करते हैं तो यदि मनुष्य भी यही करता रहा तो उनमें और मनुष्य में भेद करना मुश्किल हो जाएगा इसीलिए अपने जीवन के यदि कुछ क्षण भी औरों के लिए कुछ किया जाए तो वो ही आपको मनुष्य की उपाधि दिलाने में सक्षम हैं।
Wednesday, January 26, 2011
संसार के सभी दुखों का कारण है अज्ञान। अपने अज्ञान के कारण ही मनुष्य दुखी है उसे पता ही नहीं कि भगवान ने जो उसके लिए सोचा है वो सबसे बेहतर है, वह जिस स्थिति में है वो उसके लिए सबसे बहेतर है नहीं तो वह उससे भी बदत्तर हालात में होता, इसीलिए हे बन्दे खुदा की रज़ा में ही अपनी भलाई समझ और उसके खिलाफ जाने की गल्ती मत कर।
Tuesday, January 25, 2011
जब भी ईश्वर से प्रार्थना करने बैठे तो एक ही बात बार-बार दोहराएँ कि मैं एक शांत-स्वरूप आत्मा हूँ और परमात्मा से मेरा सबसे घनिष्ठ संबंध है बाकी सभी संबंध तो दुनियावी हैं और यहीं रह जाएँगे परन्तु परमात्मा आपके साथ सदा से हैं और सदैव ही आपके पास/साथ हैं केवल उन्हें महसूस कीजिए तब आपको सबकुछ प्रभुमय लगेगा।
Monday, January 24, 2011
यदि बच्चों के सही मित्र बनना चाहते हैं तो उनसे उनकी ही भाषा में बात करें, हमेशा संवाद की स्थिति बनाए रखें एवं इस बात को भी तूल दें कि बच्चा भी समझ रखता है। अंग्रेजी मे कहावत है कि "Child is a father of man" परन्तु हम यह बात भूल जाते हैं और अपनी ही राय बच्चे पर लादना चाहते हैं जिससे वह स्वयं को बाधित महसूस करता है और जीवन में अपने फैसले करना वह कभी नहीं सीखता।
Friday, January 21, 2011
यदि इस संसार में प्रसन्न रहना चाहते हैं तो हर घटना को ईश्वरीय आदेश समझ अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए। क्योंकि जो मनुष्य केवल अनुकूलताओं में खुश रहता है और प्रतिकूलता आते ही दुखी हो जाता है वास्तव में वह कभी तरक्की नहीं कर सकता। किन्तु जो व्यक्ति विषादों में भी मुस्कुरता है और सुख मिले या दुख सदैव प्रसन्न रहता है वह अवश्य ही उन्नति के शिखर पर पहुँचता है। ऐसा होना उसी व्यक्ति के लिए संभव है जो भगवान पर अडिग विश्वास रखता हो और संसार में होने वाली हर घटना को प्रभू इच्छा ही मानें।
Thursday, January 20, 2011
जो व्यक्ति अपने और दूसरों के प्रति उच्च विचार रखता है वही प्रगति की राह पर जा सकता है, क्योंकि सफलता के लिए बहुत ज़रूरी है कि अपने पर पूर्ण आत्मविश्वास हो जो तभी संभव है जब व्यक्ति को भगवान पर विश्वास हो। अपनी स्मपूर्ण शक्ति एकत्र करके आध्यत्म भाव से जीवन जीएँ और सदा अग्रसर रहें। जो सफलता एक आध्यत्मिक व्यक्ति पाता है वह स्थाई होती है और नास्तिक की सफलता का कोई महत्व नहीं होता।
Wednesday, January 19, 2011
मानव सेवा से बड़ा और कोई धर्म नहीं। मेरे परमात्मा सभी के दिल में निवास करते हैं किसी जीव का दिल परमात्मा के बिना निर्मित नहीं हो सकता इसीलिए हरेक में भगवान ही बसते हैं यदिे ऐसा आपका विश्वास होगा तो आप सबसे प्रेम और सौहार्द का व्यवहार करेंगे। जो व्यक्ति दूसरे को व्यक्ति न समझ कर केवल कमाई और शोषण का साधन समझते हैं वह केवल आस्तिक होने का पाखंड करते हैं, सच में उनसे बड़ा नास्तिक कोई नहीं।
Tuesday, January 18, 2011
जिसने भी मनुष्य रूप में जन्म लिया है ईश्वर ने उन्हें आत्मा के समीप रखा है,परन्तु उनमें से भी कुछ ही हैं जो आत्मा में प्रवेश कर पाते हैं। मनुष्य अपनी आत्मा को जान कर ही परमात्मा के समीप पहुँच सकता है क्योंकि हमारी आत्मा ही है जो परमात्मा का अंश है, शरीर तो नश्वर है और समाप्त हो ही जाना है परन्तु आत्मा भी परमात्मा के समान अनश्वर है और परमतत्व तक पहुँचने का ज़रिया भी।
Friday, January 14, 2011
जो लोग गल्त ढ़ग से पैसा कमाते हैं उनकी आत्मा उन्हें सदा ही कटोचती रहती है और वह कभी सुख-शांति के अधिकारी नहीं होते। गल्त काम से कमाया हुआ पैसा मनुष्य के मन, बुद्धि और आत्मा को आहत करता है और मनुष्य कायर बन जाता है। आत्मविश्वास रख के उचित आदर्शों के साथ अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए और समय आने पर सफलता अपनेआप उपलब्ध हो जाती है।
Thursday, January 13, 2011
परमात्मा का दुर्बल रूप है मनुष्य। हम सभी परमतत्व का ही अंश है और उसी में लीन हो जाना है,मनुष्य संसार में आने से पूर्व परमात्मा से विनती करता है कि मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा को ही स्मरण करेगा परन्तु जन्म लेते ही वह यह बात भूल जाता है और दुनिया की माया में फँस कर रह जाता है, पैसे की होड़ उसे कहीं सुख-चैन नहीं लेने देती और न ही उसकी इच्छाओं का कोई अन्त रहता है। इस सारी दौड़-धूप में वह सबसे ज़रूरी कर्म यानि परमात्मा को ही भूल जाता है और अपना मानव जीवन व्यर्थ गवाँ देता है।
Wednesday, January 12, 2011
जीवन में व्यक्ति कई तरह के अनुभव पाता है कुछ अच्छे और कुछ बुरे, बेहतर यादें और दुखदायी यादें परन्तु यदि हम केवल बेहतर अनुभवों को याद रखें तो यह हमारे हित में होगा क्योंकि दुखदायी क्षण आज भी हमे दुख ही देगें और हमारे जीवन को दुखदायी बना देगें। जीवन अमूल्य देन है जो हमे भगवान ने इसलिए प्रदान किया है ताकि हम ईश्वर की ओर अपने यह कदम बढ़ा सकें और उनको पा सकें।
Tuesday, January 11, 2011
सभी धार्मिक ग्रंथ यही कहते हैं कि माँसाहार न करें और यही जीवन जीने की कला भी है कि ईश्वर ने जब इतना वनस्पति बनाया है तो बेचारे मूक जानवरों की हत्या क्यों की जाए और क्यों उनकी बददुआ ली जाए। भय के साए में काटा और पका भोजन क्या हमें कुछ भी पोषण प्रदान करेगा? इसका निर्णय आप स्वयं ही ले सकते हैं। ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना ही इस प्रकार की है जो कि केवल शाकाहारी आहार के लिए उपयुक्त है और यदि हम फिर भी भगवान के बनाए इस मंदिर में कूड़ा करकट डालना चाहते हैं तो आगे सज़ा भुगतने के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए।
Monday, January 10, 2011
मनुष्य को इस बात से अवगत रहना चाहिए कि किसी के भी सामने अपना दुखड़ा न रोए क्योंकि किसी के भी आगे रोने से दुनिया वाले को मज़ाक ही बनाएगें यदि दुख इतना तीव्र हो जाए और रोना ही हो तो ईश्वर के आगे ही रोएँ क्योंकि इस प्रकार आप ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पित भी हो जाएँगे और उसी के आगे रोएँगे जो सही मायने में आपके दुख से पूर्ण परिचित हैं और आपके सबसे बड़े हितैषी भी ।
Friday, January 7, 2011
उनसे प्रेम करें जिन्हें दुनिया ने सदा दुत्कारा है, उनसे जिन्हें सदा ही इस जग से दुख के अलावा कुछ नहीं मिला क्योंकि जिनके पास सब कुछ है उनसे तो सभी प्रेम का दिखावा करते हैं, परन्तु जो भगवान का सच्चा भक्त है वो ईश्वर के बनाए गरीब-अनाथों से भी प्रेम करता है। आज आपके पास सभी कुछ है यदि कल न भी रहे तो भी ईश्वर को सदा स्मरण रखिए क्योंकि जिनके साथ ईश्वर है वो ही सबसे भाग्यशाली हैं।
Thursday, January 6, 2011
इस दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं कुछ सज्जन और कुछ दुर्जन। सज्जनो के साथ उदारता और समझदारी की नीति ही अपनाई जाती है परन्तु दुर्जनो को दंड भय के अलावा समझाने का कोई चारा नहीं, उनके साथ उदारता से नहीं बल्कि असहयोग, और विरोध का मार्ग अपनाना पड़ता है। जिस प्रकार पाप और पुण्य में अंतर होता है उसी प्रकार मनुष्य, मनुष्य में भी भिन्नता होती है, इसलिए स्थिति और स्तर के अनुरूप ही व्यवहार करना उचित रहता है।
Wednesday, January 5, 2011
स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक है कि मन से शत्रुता, ईर्ष्या,अशांति, द्वेष, घृणा,आशंका के भाव दूर भगा दिए जाएँ और ईश्वर पर अंनत विश्वास रख हिम्मत और साहस बटोरना चाहिए। सदैव हँसते- मुस्कुराते रहें, स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी प्रसन्न रखें, सदा सात्विक विचार और आचरण रखें यही स्वस्थ जीवन की कुंजी है और सफल जीवन का राज़।
Tuesday, January 4, 2011
Monday, January 3, 2011
मनुष्य के लिए सबसे बहूमूल्य वस्तु है जीवन,जो ईश्वर की सबसे बड़ी सौगात है और जिसकी कीमत हीरे से भी ज्यादा हैं क्योंकि हीरा जिस प्रकार कोयले से ही बनता है पर वह कोयले का सुगढ़ रूप है उसी प्रकार जीवन अनगढ़ों के लिए सोने और खाने से ज़्यादा और कोई महत्व नहीं रखता। इसी दुनिया में वह सुगढ़ भी हैं जिनके लिए इन पंचतत्वों से निर्मित यह जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि उनके जीने के ढंग से यह झलकता है कि "जीना इसी का नाम है" और वह स्वयं देवत्व का ही उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
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