Thursday, January 13, 2011
परमात्मा का दुर्बल रूप है मनुष्य। हम सभी परमतत्व का ही अंश है और उसी में लीन हो जाना है,मनुष्य संसार में आने से पूर्व परमात्मा से विनती करता है कि मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा को ही स्मरण करेगा परन्तु जन्म लेते ही वह यह बात भूल जाता है और दुनिया की माया में फँस कर रह जाता है, पैसे की होड़ उसे कहीं सुख-चैन नहीं लेने देती और न ही उसकी इच्छाओं का कोई अन्त रहता है। इस सारी दौड़-धूप में वह सबसे ज़रूरी कर्म यानि परमात्मा को ही भूल जाता है और अपना मानव जीवन व्यर्थ गवाँ देता है।
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