Monday, January 31, 2011

आत्मशांति कभी भी संसार के किसी भी पदार्थ या सुखों के भोग से संभव नहीं। आत्मशांति तो आत्मा की धरोहर है और वो हर आत्मा के पास है परन्तु उसे जाग्रत करना पड़ता है, आत्मा इस काम में सक्षम भी है केवल ज़रूरत है उसे ईश्वरीय प्रेम और सहारे की जोकि हमें केवल ईश्वर के समीप जाने से ही प्राप्त होगा और ईश्वर तो हर जगह हैं केवल उनसे साक्षातकार करने की इच्छा हमारे मन में होनी चाहिए।

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