Monday, January 10, 2011
मनुष्य को इस बात से अवगत रहना चाहिए कि किसी के भी सामने अपना दुखड़ा न रोए क्योंकि किसी के भी आगे रोने से दुनिया वाले को मज़ाक ही बनाएगें यदि दुख इतना तीव्र हो जाए और रोना ही हो तो ईश्वर के आगे ही रोएँ क्योंकि इस प्रकार आप ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पित भी हो जाएँगे और उसी के आगे रोएँगे जो सही मायने में आपके दुख से पूर्ण परिचित हैं और आपके सबसे बड़े हितैषी भी ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment