Thursday, February 3, 2011
पेट-प्रजनन तक ही मानव जीवन को सीमित रखने वाले यह बात भूल जाते है कि मनुष्य को यह बहूमूल्य जीवन इसीलिए मिला है कि वह स्वार्थ सिध्दी के लिए नहीं परमार्थ के लिए जीएँ। परमार्थ भले ही किसी भी स्तर पर हो उससे दूसरों का भला अवश्य ही होता है और भगवान जो सबके हैं व सबका ही सदैव हित ही चाहते हैं वो जब यह देखते हैं कि आपके किए गए कार्य से यदि किसी प्राणी का भला होता है तो ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं।
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