Friday, February 19, 2010

परमात्मा सदा गतिशील है और सर्वथा अचल और स्थित भी।वे दूरातिदूर अनुभव होते हैं और अत्यंत समीप भी।इस समग्र सृष्टि में जो कुछ भी दॄश्यमान हैं,वह इन्हीं से परिपूर्ण है और इन्हीं में संव्याप्त भी।
ईशावास्योप्निषद ॥५॥

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