Thursday, March 18, 2010

सुःख और दुःख एकदूसरे के पूरक हैं इनकी एकता कोई नहीं तोड़ सकता।सुःख के बाद दुःख, दुःख के बाद सुःख मनुष्य जीवन की नियति ही कही जा सकती हैं। स्वेच्छा से दुःख को गले लगाना ही सुःख को बुलावा देना हैं।

3 comments: