भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते। अर्थात इंद्रियों के स्पर्श से मिलने वाले जितने सुख-भोग हैं,वे सभी परिणाम में दुःख देने वाले हैं। यानि ईश्वर से कुछ माँगना ही हैं तो सुख और भोग नहीं केवल ईश्वर को प्राप्त होने की इच्छा करें यही श्रेष्ठ सुख हैं।
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