Friday, October 15, 2010

स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। ईश्वर ने यह संसार असीम बनाया हैं कोई भी समग्र रूप से इसकी सेवा कर सके ऐसा लगभग असंभव ही हैं क्योंकि कई तरह की बाधाएँ जैसे समय की कमी, योग्यता की कमी, साधनो की कमी, कभी भाषा अलग होने के कारण समस्त संसार की सेवा संभव नहीं। अतः अपने संपर्क और प्रभाव क्षेत्र में ही कुछ करते-धरते बन पड़ सकता हैं। यदि सीमित स्तर में भी यह करा जाए तो समाज का बहुत सुधार हो सकता है। इसकी न्यूनतम परिधि स्वयं की सुधारसेवा तक भी सीमित हो सकती हैं।

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