Thursday, December 2, 2010
पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, नदियाँ एवं जलाश्य अपना पानी स्वयं नहीं पीते, सूर्य-चन्द्रमा अपने प्रकाश और शीतलता से औरों को सनिग्ध करते हैं उसी प्रकार मनुष्य का जन्म भी इस धरती पर परोपकार के लिए हुआ है। भगवान जब मनुष्य के कर्मो का लेखा-जोखा करता हैं तब इसी बात का आकलन किया जाता हैं कि मनुष्य ने अपने जीवन का कितना भाग परोपकार में बिताया हैं, यदि मनुष्य ने सौ झूठ बोलकर भी किसी की भलाई की हो तो वह परमपिता के अनुसार क्षमाशील हैं। जितना संभव हो अपना जीवन परोपकार में लगाएँ क्योंकि अपने लिए तो पशु भी जीते है, इंसान वही हैं जो औरों के लिए जिए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
very noble and humble thoughts!
ReplyDelete