Wednesday, December 15, 2010
विद्वान ऋषि कहते है- "तद्विज्ञाने न परिप यन्ति धीरा आनंद रूपमर्भृतम्।" अर्थात ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अंतःकरण में विराजमान उस आनंदरूपी ब्रहं का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों से भी परम-ज्ञानी हो जाते हैं। यानि सम्पूर्ण ब्रहांड का ज्ञान परमात्मा के रूप में हमारे भीतर हैं, केवल खोजने की आवश्यकता हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment