Monday, December 27, 2010
हम मनुष्य पशु-पक्षियों को देख बहुत कुछ सीख सकते हैं, पशु-पक्षी इतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं जिसमें वह स्वयं समा सके एवं उतना ही दाना चुगते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता हैं, वह इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि स्रष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं, जब जिसकी जितनी जरूरत हैं आसानी से मिल जाता है,तो फिर संग्रह क्यों किया जाए? इसी प्रकार यदि हम भी उतना ही लें जिसकी आवश्यकता हैं और संग्रह की मनोवृति त्याग दें तो हम भी सुखी होगें और बाकी सब भी। अनावश्यक कलह की स्थिति अनावश्क संग्रह के कारण ही पनपती हैं इस बात को सदा ध्यान में रखें।
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wonderful!missing u.
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