Saturday, December 18, 2010
ईश्वर को सबसे प्रिय हैं दुःख और इसे संभाल कर रखने के लिए वह देते हैं केवल अपने सबसे प्रिय भक्तों को क्योंकि ज्यादातर लोग कष्ट को मजबूरी की तरह सहते हैं। कुछ ही भक्त हैं जो यह जानते हैं कि दुख हमारी आत्मा को पवित्र करने की प्रक्रिया हैं एवं नितांत आवश्यक हैं। जिस प्रकार सोने को आग में तपना जरूरी है, उसी प्रकार दुख ईश्वर की धरोहर हैं और वह इसलिए मिलते हैं ताकि दुख मिलने के बाद भी यदि भक्त के आनंद, उल्लास और उत्साह में कभी कोई कमी न आए तो वही सच्चा भक्त हैं।
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rightly said!
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