Sunday, January 31, 2010
Saturday, January 30, 2010
Friday, January 29, 2010
Thursday, January 28, 2010
Wednesday, January 27, 2010
Tuesday, January 26, 2010
हम सबके अंदर भगवान गुप्त रूप में निवास करते हैं। जो समझदार है, ज्ञानी हैं, भगवत् स्वरूप को समझते हैं,वे यह मानते है कि हम सबके अंदर स्थित भगवान ही वह परमप्रकाश की ज्योति है,जिसे हम बाहर परमेश्वर कहकर पूजते हैं। परन्तु इसके विपरीत भ्रमित, अज्ञानी, मोह में उलझे व्यक्ति यह सोचते है कि हम ही सही सोचते है,बाकी सभी गल्त हैं;यहाँ तक की ये भगवान की भी(जिन्होंने हमें यह अमूल्य जीवन प्रदान किया है) उस परब्रह्म परमेश्वर की हर पल अवहेलना करके व्यर्थ के कर्म करते रहते हैं। अतः ऐसे अज्ञानी एवं भ्रमित लोगों की संगत नहीं रखनी चाहिए और हर क्षण भगवान का स्मरण करना चाहिए।
Monday, January 25, 2010
भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा हैं- न हि कशिचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।
अर्थात किसी भी क्षण मनुष्य बिना कर्म किए नहीं रह सकता। यानि कि कर्म जीवन की सबसे समर्थ और सार्थक परिभाषा है। हर रोज़ हम जीवन के साथ-साथ कर्म(कार्य) भी करते है। कोई भी क्रिया(कर्म) स्वयं में पाप या पुण्य नहीं होती,इसे यह दरजा उन भावों से मिलता है, जो इसके पीछे सक्रिय है।
Sunday, January 24, 2010
Saturday, January 23, 2010
Friday, January 22, 2010
Thursday, January 21, 2010
विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है
१ हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)
२ यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)
३ शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)
४ पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
५ दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्)
६ जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
७ बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)
८ कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
९ ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)
११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)
१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
१ हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)
२ यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)
३ शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)
४ पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
५ दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्)
६ जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
७ बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)
८ कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
९ ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)
११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)
१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
Wednesday, January 20, 2010
Tuesday, January 19, 2010
Monday, January 18, 2010
Sunday, January 17, 2010
Saturday, January 16, 2010
Friday, January 15, 2010
भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान को प्राप्त करने के तीन सरल उपाय हैं सुमिरन, श्रवण और संकीर्तन- सुमिरन का अर्थ है कि निरंतर प्रभु नाम का जाप करना, श्रवण यानि जहाँ प्रभु की गाथा हो रही हो उसे कानो द्वारा ग्रहण करना एवं संकीर्तन का अर्थ है प्रभु नाम का गुणगान करना और प्रेम से अपने आराध्य को पुकारना।
Thursday, January 14, 2010
Wednesday, January 13, 2010
Tuesday, January 12, 2010
Monday, January 11, 2010
Saturday, January 9, 2010
Friday, January 8, 2010
Thursday, January 7, 2010
Wednesday, January 6, 2010
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- मामनुस्मर युध्य च- मेरा(प्रभु का) निरंतर स्मरण करते हुए युध्द करो, यह निश्चित है कि तुम विजय को प्राप्त होगे।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।
अर्थात भगवान का स्मरण निरन्तर करते हुए मनुष्य को अपनी विपरीत परिस्थितों से जूझता रहे एवं जीवन रूपी संघर्ष में निरन्तर ईश्वर को याद करते हुए संग्राम करता रहे तो वह निश्चित ही विजयश्री को प्राप्त होता है।
Tuesday, January 5, 2010
Monday, January 4, 2010
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