धनेन किं यो न ददति याचके,
बलेन किं यश्च रिपुं न बाधते।
श्रुतेन किं यो न च धर्ममाचरेत,
किमात्मना यो न जितेन्द्रियो भवेत्॥
अर्थात उस धन से क्या लाभ ,जो याचक को नहीं दिया जाता, उस बल से क्या,जो शत्रु को रोक न सके,उस ज्ञान से क्या लाभ, जो आचरण में न आ सके और उस आत्मा से क्या, जो जितेंद्रिय न बन सके।
Monday, January 11, 2010
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