पारब्रह्म परमेश्वर हमारे भीतर ही तो हैं परन्तु हम कस्तूरी मृग की भांति ही सुगंध को बाहर खोजते रहते हैं, पर परम सत्य तो यह है कि परमात्मा की सुगंध अर्थात स्वयं परमात्मा हमारे भीतर ही सम्माहित हैं। अतः मृगतृष्णा में न भटके, अपने आराध्य को अपने अंतःकरण में खोजें।
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