Thursday, January 21, 2010

विविध धर्म-सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र का भाव सन्निहित है
हिन्दू- ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुखस्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुध्दि को सन्मार्ग पर बढा़ने के लिए पवित्र प्रेरणा दे।
(ॠग्वेद ३.६२.१० यजुर्वेद ३६.३,सामवेद १४६२)

यहूदी-हे जेहोवा(परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर,मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
(पुराना नियम भजन संहिता ४.८)

शिंतो-हे परमेश्वर,हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें,परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे हृदय में अभद्र बातों का अनुभव न हो। (जापानी)

पारसी-वह परमगुरू(अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ॠत तथा सत्य के भंडार के कारण,राजा के सामान महान्‌ है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।

दाओ(ताओ) -दाओ(ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है। (दाओ उपनिषद्‍)

जैन-अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।

बौद्ध धर्म-मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
(दीक्षा मंत्र/त्रिशरण)

कन्फ्यूशस-दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो,जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

ईसाई-हे पिता, हमें परीक्षा में ना डाल;परन्तु बुराई से बचा,क्योंकि राज्य,पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।

१० इस्लाम-हे अल्लाह,हम तेरी ही वन्दाना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा;उन लोगों का मार्ग,जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
(कुरान)

११ सिख-ओंकार(ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता,समर्थ पुरूष,निर्भय,निर्वैर,जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरू की कृपा से जाना जाता है।
(ग्रन्थ साहिब)

१२ बहाई- हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटो से तारनहार तथा स्व निर्भर।
 
 

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