भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा है- अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
अर्थात यह मन अभ्यास और वैराग्य से वश में आता है। एक संयमी, शक्तिशाली और स्वस्थ मन को निश्चित ही भगवान का दिव्य वरदान,हर कर्म में उल्लास एवं परमशांति मिलती है।
Sunday, January 24, 2010
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