Wednesday, September 15, 2010
मनुष्य की अंतरआत्मा परमात्मा के ही समान सर्वगुण संपन्न हैं,वह इतनी संपन्न हैं कि उसकी संपन्नता में कभी अभाव नहीं हो सकता इसीलिए जब मनुष्य को अंतरंग की संपन्नता का ज्ञान होता हैं तो उसकी समस्त कामनाओ का स्वतः ही अंत हो जाता हैं और मनुष्य के जीवन में मॄगतॄष्णा का अंत हो जाता है, तब मनुष्य की कोई भी इच्छा शेष नहीं रह जाती एवं वह स्वयं में सम्पूर्ण हो जाता हैं।
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