महान ऋषियों एवम् संतो ने कहा हैं कि मनुष्य जीवन से बहुमूल्य इस संसार में कुछ भी नहीं। जो मनुष्य मानव जीवन की इस गरिमा को नहीं समझते उनके लिए मानव जीवन और पशु-जीवन में कुछ खास अंतर नहीं हैं जिस प्रकार पशुयों में चैतन्यता का आभाव होने के कारण उनके लिए बहुमूल्य पदार्थो की कीमत भी दो कौड़ी की होती हैं, उसी प्रकार अचेतन मनुष्य भी आत्मगरिमा से उदासीन रहते हैं, अपने सभी सामर्थ्यों को कोयला बना हाथ मलते हुए पश्चात्ताप के आँसू लिए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।
अतः यही उचित होगा कि परमात्मा के दिए गए इस महान अनुदान को जैसे-तैसे काटने की अपेक्षा सही अर्थों में मानव जीवन को और श्रेष्ठ एवं गरिमामय बनाया जाए ताकि पीछे पछताना न पड़े।
Wednesday, September 22, 2010
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