Wednesday, September 29, 2010
प्रकृति का सूक्ष्म शरीर अदृश्य हैं। ध्वनि, प्रकाश, चुबंक की किरणें जब किसी के सम्पर्क में आते है तभी अपना बोध कराते हैं। उसी प्रकार अत्यत्न शक्तिशाली लेसर किरणें भी अदृश्य हैं। इसी तरह मनुष्य पशु वर्ग का एक प्राणी हैं, यदि स्थूल रूप से देखा जाए तो मनुष्य एक हाड़-माँस का पुतला ही तो हैं परन्तु उसकी सूक्ष्म क्षमता का कोई ओर-छोर नहीं है। अपनी सूक्ष्मता का ज्ञान होते ही मनुष्य में देवत्व का प्रवेश हो जाता है और उसका सामर्थ्य स्वयं परमात्मा के समतुल्य हो जाता हैं।
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