परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिंतनम्।
वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम्॥
मनुस्मृति १२/५
अर्थात परधन के लेने की इच्छा, मन में किसी का अनिष्ट चिंतन करना, नासितकता __ ये तीन प्रकार के मानसिक पाप हैं।
Friday, December 25, 2009
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