संसार के हरेक कार्य को यह सोच ही करना चाहिए कि इसमें ईश्वर की इच्छा विद्यमान है, तभी मनुष्य उस कार्य को सफलता पूर्वक समाप्त कर सकता हैं, अन्यथा वह सदा ही खिन्न प्रवृति से कार्य करेगा और अंत में निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा। सिर्फ उपल्बधियों का ध्यान न रख प्रतिकूलताओं पर भी नितांत विचार करें।
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