Tuesday, July 13, 2010
अंहकार में वशीभूत हो मनुष्य शारीरिक सुख को ही सब कुछ मान बैठता हैं,परन्तु जीवन की साँझ आते-आते उसे इस बात का आभास हो जाता है कि जीवन क्षणभंगुर हैं, वो आत्मा की हैं जो कि शाश्वत सत्य हैं पर उस समय तक बहुत देर हो चुकती हैं एवं मनुष्य के हाथ सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं रह जाता क्योंकि यह बहूमुल्य मानव जीवन तो वह गवाँ चुकता हैं।
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