आत्मशांति यानि मन की शांति भौतिक वस्तुयों के भोग द्वारा मिलना असंभव हैं, वह तो केवल मन की श्रेष्ठता से मिलती हैं जो कि स्वयं मनुष्य के भीतर हैं, जिस प्रकार सोना आग में तप के और निखरता हैं उसी प्रकार मनुष्य जीवन रूपी ज्वार भाटे में हिचकोले खाकर ही मंजिल(परमात्मा) तक पहुँच सकता हैं।
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