Tuesday, July 20, 2010
उपासना का मनुष्य के विकास से अद्वितिय सम्बन्ध है,क्योंकि शुद्ध हृदय से भजन कीर्तन करना, प्रभु के समीप बैठ उन्हें निहारना एवं नाम जपने से मनुष्य के तन, मन के वह सूक्ष्म संस्थान जागृत होते हैं जो मनुष्य को सफल, दूरदर्शी और सद्गुणी बनाते हैं, परन्तु केवल भजन करने या माला फेरने से भगवान प्रसन्न नहीं होते, हमारा कर्म भी भगवान की पूजा का एक आधार हैं क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं एवं सर्वदा क्रियाशील हैं इसीलिए अपना कर्म को धर्म समझ कर करने वाले सभी मनुष्य ईश्वर को अत्यन्त प्रिय हैं चाहे वह खेत में काम करने वाला किसान हो या पत्थर तोड़ने वाला मज़दूर। कर्तव्य भावना से किए गए कर्म से भगवान उतने ही प्रसन्न होते हैं जितना कि भजन कीर्तन से।
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