अपने सांसारिक कर्तव्यों की पूर्ति करते-करते मनुष्य को अपने शेष समय को अपनी आत्मा की खोज के लिए आध्यत्म मार्ग में लगाना चाहिए ताकि उसके लोक-परलोक एक साथ बनते चलें, इस द्विमुखी साधना में साधक को ज़रा भी कठिनाई नहीं होती क्योंकि परमात्मा की कृपा उसका नाम जपने वालो पर सदा बनी रहती हैं।
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