जीवन की सफलता और महत्ता मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं, भौतिक वस्तुएँ तभी तक सुख देने वाली प्रतीत होती हैं जब तक उनकी प्राप्ति नहीं होती। सच्चा एवं चिरस्थाई सुख मनुष्य की आत्मिक प्रगति पर ही निर्भर हैं,एवं उसी की प्राप्ति के लिए ही यह मनुष्य जीवन भगवान से मिला हैं।
is satya ko koi nahin jhuthla sakta!
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