Monday, August 15, 2011

यथा हि पुरूषः शालां, पुनः संप्रविशेन्नवाम्‌।
एवं जीवः शरीराणि, तानि तानि प्रपद्यते॥
अर्थात जिस तरह एक पुरूष नए घर में प्रवेश करता हैं, वैसे ही जीव विभिन्न शरीरों को धारण करता हैं।

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