Wednesday, March 31, 2010

श्रीमद्‌भागवत में एक प्रसंग आता हैं, जिसमें भगवान कहते हैं कि वैकुंठ वहीं हैं जहाँ मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं। मेरी लीला का, नाम-रूप का, गुणो का गान करते हैं, मैं वहीं विराजमान हूँ एवं ऐसे स्थान के धूल के कण भी पवित्र हो जाते हैं।

Monday, March 29, 2010

नास्ति गंगासमं तीर्थं न देवः केशवात्परः।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतो न भविष्यति॥
अर्थात गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं,केशव के सामान कोई देवता नहीं, गायत्री से श्रेष्ठ न कभी कोई जप हुआ हैं और न आगे होगा।

Sunday, March 28, 2010

यथा हि पुरूषः शालां, पुनः संप्रविशेन्नवाम्‌।
एवं जीवः शरीराणि, तानि तानि प्रपद्यते॥
अर्थात जिस तरह एक पुरूष नए घर में प्रवेश करता हैं, वैसे ही जीव विभिन्न शरीरों को धारण करता हैं।

Saturday, March 27, 2010

आत्मा की खुराक हैं शुध्द ज्ञान,शुध्द कर्म एवं शुध्द उपासना। यह तीनो आत्मा के लिए उतने ही आवश्क हैं जितना शरीर के लिए भोजन।

Friday, March 26, 2010

ईश्वर की सत्ता का गुणगान शब्दों में करना अति कठिन हैं, ईश्वर सृष्टि के कण-कण में उसी तरह व्याप्त हैं जिस प्रकार दूध में घी, दिव्य चक्षुओं के बिना उन्हें देख पाना असंभव हैं, परन्तु हर पल हर क्षण ईश्वर की कृपा बरसती हुई महसूस करें।

Thursday, March 25, 2010

संसार एक कर्मभूमि हैं, जो जैसा कर्म करता हैं, उसे वैसा ही फल मिलता हैं। यदि कोई किसान बबूल बोकर, गेहूँ की फसल की इच्छा रखे तो यह उसी प्रकार असंभव हैं जिस प्रकार कोई मनुष्य दुष्कर्म करके भगवान से यह आशा रखें कि उसका जीवन सुखी एवं समृद्ध हो। अतः मन में सदैव पवित्र विचार रखें एवं आशापूर्ण विचारधारा रखें।

Wednesday, March 24, 2010

यदि भगवान से कुछ माँगना ही हैं तो केवल दुःख माँगिये, श्रीकृष्ण ने जब अपनी परम भक्त कुंती से वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने दुःखो की कामना की। यह अति विलक्षण सत्य हैं कि दुःखो में नित्य- निरंतर मनुष्य ईश्वर को याद करता हैं एवं सुखो के क्षणभंगुर आगमन से वह शाश्वत सत्य(परमात्मा) को ही भूल जाता हैं।
इस मल-मूत्र के पिटारे शरीर पर इतना अभिमान न करें, यह जिन पंच-तत्वो से निर्मित हैं,अंत में इसे उन्हीं में समा जाना हैं अतः अपने जीवन में इस प्रकार के कर्म कर जाएँ कि मृत्यु उपरान्त भी इस जगत में अमर हो जाएँ।

Tuesday, March 23, 2010

हर मनुष्य के जीवन में सफलताएँ और असफलताएँ दोनो ही आती हैं परन्तु मनुष्य को चाहिए कि वह असफलताओं और कष्टों को याद करने की अपेक्षा, उत्साह और उमंग के लिए आवश्क हैं कि जीवन के सुखद क्षण एवं सफलताओ को याद रखा जाए। ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखना भी इसी दिशा की ओर प्रथम कदम हैं।

Monday, March 22, 2010

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते। अर्थात इंद्रियों के स्पर्श से मिलने वाले जितने सुख-भोग हैं,वे सभी परिणाम में दुःख देने वाले हैं। यानि ईश्वर से कुछ माँगना ही हैं तो सुख और भोग नहीं केवल ईश्वर को प्राप्त होने की इच्छा करें यही श्रेष्ठ सुख हैं।

Friday, March 19, 2010

प्रभुप्राप्ति ही राजमार्ग हैं। भगवान बार-बार हमें यह बात भागवत गीता द्वारा बताते हैं कि इसी जीवन में बंधनो से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लो। मोक्ष का अर्थ हैं चेतना का ऊधर्वीकरण, यानि अपना अहं मिटाकर भगवान में लीन हो जाना, ऐसा होने पर परमात्मा हमारी चेतना में कण-कण में निवास करने लगते हैं और सभी दुःख-कष्ट मिट जाते हैं।

Thursday, March 18, 2010

सुःख और दुःख एकदूसरे के पूरक हैं इनकी एकता कोई नहीं तोड़ सकता।सुःख के बाद दुःख, दुःख के बाद सुःख मनुष्य जीवन की नियति ही कही जा सकती हैं। स्वेच्छा से दुःख को गले लगाना ही सुःख को बुलावा देना हैं।

Wednesday, March 17, 2010

ब्रह्ममहूर्त में उठ कर जो ईश्वर को स्मरण करता हैं, ईश्वर उस पर अपनी कृपा दॄष्टि सदैव ही बनाए रखते हैं, एवं यह भक्त भगवन को अत्यन्त प्रिय हैं क्योंकि ईश्वर तो भावना के भूखे हैं,और इस प्रेम-त्याग का मिश्रित भाव परमपिता को भाव विभोर कर देता हैं।

Tuesday, March 16, 2010

महापुरूषों एवं संतो को, उर्दव गति प्राप्त होती हैं यानि वह मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार जिनका वध स्वयं परमात्मा करते हैं चाहे वह दुराचारी एवं अधर्मी ही क्यों न हो परम गति को प्राप्त होते हैं,इस बात का परिमाण हमें रावण, कंस एवं हरिणकश्यप जैसे दुष्टों का अंत ईश्वर द्वारा होने पर मिलता हैं। और अधिकतर मनुष्य जो साधारणतः तो मध्यम गति को प्राप्त होते हैं क्योंकि अपनी अपूर्ण इच्छाओं एवं संचित कर्मो के कारण उनका पुर्नजन्म अवश्यंभावी हैं, परन्तु यदि ऐसे मनुष्य भी अंत समय भगवान को स्मरण करते हैं तो दया एवं करूणा के अथाह सागर(परमात्मा) में लीन हो जाते हैं अर्थात वह आवागमन के चक्रव्यूह से मुक्त हो जाते हैं।हर पल उस परमपिता को याद करें यही परम स्मृति हैं।

Monday, March 15, 2010

यदि भगवान से कुछ माँगना ही हैं तो केवल दुःख माँगिये, श्रीकृष्ण ने जब अपनी परम भक्त कुंती से वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने दुःखो की कामना की। यह अति विलक्षण सत्य हैं कि दुःखो में नित्य- निरंतर मनुष्य ईश्वर को याद करता हैं एवं सुखो के क्षणभंगुर आगमन से वह शाश्वत सत्य(परमात्मा) को ही भूल जाता हैं।

Saturday, March 13, 2010

माम्‌ उपेत्य भगवान को प्राप्त हो जाना ही सही मार्ग हैं और शांतिप्राप्ति का एकमात्र उपाय हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा हैं मामुपेत्य पुनर्जन्म न विद्यते अर्थात यह भगवान का आश्वासन हैं कि उन्हें प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता और हम सोहम्‌ सच्चिदानन्दोहम्‌ हो जाते हैं अर्थात हमारी आत्मा परमतत्व में लीन हो जाती हैं एवं हम साक्षात्‌ अविनाशी परमब्रह्म की सत्ता हो जाते हैं

Friday, March 12, 2010

जीवन में पवित्र विचारों का बहुत ही महत्व हैं, बहुत बार एसा कहा जाता हैं कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन, उसी प्रकार जिस तरह के विचार मनुष्य के होगे उसी के अनुरूप वह कर्म करेगा और उसी के अनुसार उसे फल प्राप्त होगें।

Thursday, March 11, 2010

God decides the best for us, He knows for sure how the blessing we are asking might ruin our life thus it is not being granted to us. So our biggest well wisher is The Almighty and have faith He takes care of us all the time.
ईश्वर को पुरूष विषेश की उपाधि दी गई हैं यानि ईश्वर वे हैं जो पुरूषों में विशेष(श्रेष्ठतम) हैं जिन्हें लाभ-हानि, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु कुछ भी विचलित नहीं करती।

Wednesday, March 10, 2010

हर घर में साक्षात भगवान मौजूद हैं माता-पिता के रूप में क्योंकि भगवान हर समय हर जगह रहते तो हैं परन्तु दॄष्टिगत नहीं होते, अतः ईश्वर ने अपना यह काम माता-पिता को सौंपा हैं।

Tuesday, March 9, 2010

जिस प्रकार घी दूध के कण-कण में समाया रहता हैं एवं प्रयत्नपूर्वक उसे बाहर निकाला जाता हैं उसी प्रकार ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं आवश्यकता हैं प्रयत्नपूर्वक उन्हें खोजने की और अपने मन को सुमिरन सीखाने की।

Monday, March 8, 2010

ईश्वर किसी से पक्षपात नहीं करते,वे तो दया एवं करूणा के सागर हैं जो हमारे कर्मोनुसार हमें फल देते हैं।अतः अपने कर्मों द्वारा किसी को दुःख तकलीफ न पहुँचाए।

Sunday, March 7, 2010

जिस प्रकार माता-पिता सदा पुत्र का इंतजार करते है उसी प्रकार परम पिता परमेश्वर सदा प्रतीक्षा करते हैं कि कब हम उनके समीप आए तो ताकि वह करूणा एवं प्रेम की वर्षा हम पर कर सकें तथा हमारा योगक्षेम वहन कर सकें अर्थात हमारा उद्धार कर सकें।

Saturday, March 6, 2010

उस परम ब्रह्म के अंश हैं हम सभी और उसमें समा जाना ही गति हैं(मोक्ष) अतः परम पिता में सदा ध्यान लगाए एवं हरेक प्राणी को उनका ही स्वरूप मानें।

Friday, March 5, 2010

जीवन एक सराय के समान हैं, जितने रिश्ते-नाते हैं सब यहीं छूट जाते हैं, सभी कुछ यहीं रह जाता हैं यह मोह-माया के जाल में जकड़कर आत्मा तड़पती रहती हैं क्योंकि आत्मा को यह शरीर प्रभु प्राप्ति के लिए प्रदान किया गया हैं एवं हर मनुष्य के जीवन का यही लक्ष्य भी हैं,परन्तु मनुष्य इस परम लक्ष्य को छोड़ केवल धन संग्रह और जीवन यापन में लगा हुआ हैं।

Thursday, March 4, 2010

ईश्वर में आस्था रखने वाला मनुष्य हर परिस्थिति से धैर्य और साहस से जूझता हैं एवं उसे सदा यह विश्वास रहता हैं कि सुबह का सूर्य नव हर्षोल्लास लेकर आएगा।

Wednesday, March 3, 2010

आत्मा सत्य है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि एक चोर भी दूसरे से यह अपेक्षा नहीं रखता हैं कि उसके यहाँ कोई चोरी न करें, उसी प्रकार एक दुराचारी व्यक्ति भी दूसरों से सदा सदाचार की ही अपेक्षा रखता हैं, यह बात इस बात का प्रमाण हैं कि हर मनुष्य की आत्मा निष्पाप एवं अटल सत्य हैं एवं वह व्याकुल हैं परमात्मा से मिलन के लिए परन्तु आत्मा को मनुष्य के दुष्कर्मो के चलते आवागमन की चक्की में पिसना पड़ता हैं।

Tuesday, March 2, 2010

जीवन सार्थक होना चाहिए बड़ा नहीं। जीवन को सार्थक बनाने के लिए आवशक हैं कि हम हर पल उस परम पिता को याद करें और परमेश्वर की छवि अपने मन में बसा लें ताकि हर जगह हमें केवल परम पिता की कृपा बरसती हुई प्रतीत हो।

Monday, March 1, 2010

God is omnipresent and He knows everything, He is calling upon you with His both hands streched , you just need to try and keep trying purifying yourself to reach Him.
जीवन का सफर इतना कठिन है कि ईश्वर कृपा के बगैर यह जीवन बिताना बहुत ही मुश्किल हैं। जीवन में आशा और उत्साह के लिए बहुत ही जरूरी है कि मनुष्य का ईश्वर पर अटल विश्वास एवं आस्था हो तभी मनुष्य अपनी विफलताओं और दुर्गमता से जूझ सकता हैं।