Friday, October 29, 2010

भगवान के वरिष्ठ राजकुमार होने के नाते विश्व की समस्त वस्तुओं पर आपका समान अधिकार हैं, पहाड़ आपके, नदियाँ आपकी, वन-उद्यान अपने, बशर्ते कि आप संग्रह न करें,जितना आवश्यकता हो उतना ले लें और बाकी दूसरों के उपयोग के लिए छोड़ दें क्योंकि मिल-बाँट कर खाने की नीति ही सुखकर हैं और सबको सुख देना ही तो परमात्मा चाहते हैं, क्योंकि वह परमपिता हैं और अपनी संतान का सदैव सुख ही चाहते हैं।

Thursday, October 28, 2010

इस सरस्वती की प्रतिनिधि जिह्वा से सात्विक अस्वाद भोजन और मधुर हितकारी वचन बोलने की साधना करनी चाहिए तभी तो हम सचमुच में माँ का वरदान सही अर्थों में पा सकेगें क्योंकि जिस प्रकार अन्य देवी-देवताओ से प्रार्थना करते हैं और वरदान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारी जबान को भी बिना नमक और चीनी का भोजन और मधुर वचन बोलने की साधना भी करनी चाहिए।

Tuesday, October 26, 2010

सौभाग्यवती होने का सुख जीवन में हर लड़की को मिले यही दुआ है मेरी ईश्वर से, बना रहे सब सुहागनो का सुहाग और मनायें सब करवाचौथ का वर्त खुशी-खुशी अपने पति के साथ।

Monday, October 25, 2010

जीवन ईश्वर की अमूल्य देन हैं इसे दूसरों की भलाई,बुराई में न बिताएँ।सबकी अच्छाई ही देखें और जिस प्रकार अपनी बुराईयाँ नज़र अंदास करते हैं उसी तरह हर व्यक्ति को उसकी बुराईयों एवं कमियो के साथ ही अपनाएँ। सम्पूर्ण ब्रह्माड स्वयं ईश्वर और उनका स्वरूप ही तो हैं, जरूरत हैं उनके हर रूप को अपनाने की जो तभी संभव हैं जब आप सिर्फ हर मनुष्य को अपने ही समान परमात्मा का वरिष्ठ राजकुमार ही मानें।

Friday, October 22, 2010

विद्वानों ने कहा है कि आध्यत्मिकता का दूसरा नाम प्रसन्नता हैं, जो प्रफुल्लता से जितना दूर हैं वह ईश्वर से भी उतना ही दूर हैं। वह न तो आत्मा को जानता हैं न ही परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीझने वाले और उदासीन रहने वाले व्यक्तियों को ऋषियों ने नास्तिक ही बताया हैं। जो सदा हँसता-मुस्कुराता हैं वह ईश्वर का ही प्रकाश सब ओर फैलाता हैं। रोना एक अभिशाप हैं और हँसना एक ऐसा वरदान हैं जो जीवन के वर्तमान को तो सँवारता ही हैं,परन्तु भविष्य को भी उज्ज्वल बनाता हैं। भगवान ने जो कुछ भी बनाया और उपजाया हैं वह सभी को खुश रखने के लिए बनाया गया हैं, जो कुछ बुरा और अशुभ हैं वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए रचा गया हैं ताकि मनुष्य जीवन के संर्घषो से सबक ले सके और अपने अनुभवों से दूसरों को भी सीख दे सके। इसलिए सदा हँसते रहे और दूसरों को हँसाते रहें यही सच्चा आध्यात्म हैं।

Thursday, October 21, 2010

दुनिया में दो ही तरह के लोग सुखी रह सकते है एक जो है मूढ़तम या दूसरे बहुत ही प्रखर बुद्धि वाले। मूढ़तम वह जो पेट-प्रजनन के ऊपर कुछ सोच ही नहीं सकते और प्रखर बु्द्धि वह जो विचार संपदा के आधार पर मिलने वाली रिद्धि-सिद्धियो को पाकर समाज एवं देश के
मार्गदर्शक बनते हैं। ऐसे ही व्यक्ति सबका श्रेय-सम्मान पाते हैं और हर किसी को परांगत बुद्धि प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।

Wednesday, October 20, 2010


आपकी बहुत कृपा है भगवान कि अपने ही रूप में आपने हमें हमारे पिता प्रदान किए जिन्होने जीवन में सदा हमे सही मार्ग पर ही चलना बताया,एक गुरू बन जिन्होने हमें आपसे(परमात्मा) जोड़ दिया और हमारे जीवन को दिया एक सच्चा अर्थ जो हैं केवल ईश्वर से जुड़ कर उनके सम ही बन जाना।
जिस प्रकार महापुरूषों का जन्मदिवस किसी विषेश दिन होता हैं उसी प्रकार भगवान ने आपको इस समर्थ बनाया हैं कि आपका जन्मदिन भी किसी दिन विषेश(दिवाली, दशहरा) पर होता हैं जो कि ईश्वर का हम सभी को संकेत हैं कि आप इस जग में एक महान आत्मा(संत) हैं। हमारा जीवन सौभाग्यशाली हैं कि आपसे जुड़ा हैं एवं इसके लिए हम परमात्मा को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
आपको कुछ भेंट दे इस कामना से ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि आपके जीवन का हर क्षण ईश्वर के सान्निध में बीते एवं आपके महान कार्यों से हम सदा हम प्रेरणा ले।

Tuesday, October 19, 2010

All the other dad's give gifts to their children on festivals and occassions but mine gives us the most precious gift of knowledge and wisdom everyday. His sharing time with us are the most cherished moments for us. May God bless him and blesses us that we are his children for every human birth we get .

Friday, October 15, 2010

स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। ईश्वर ने यह संसार असीम बनाया हैं कोई भी समग्र रूप से इसकी सेवा कर सके ऐसा लगभग असंभव ही हैं क्योंकि कई तरह की बाधाएँ जैसे समय की कमी, योग्यता की कमी, साधनो की कमी, कभी भाषा अलग होने के कारण समस्त संसार की सेवा संभव नहीं। अतः अपने संपर्क और प्रभाव क्षेत्र में ही कुछ करते-धरते बन पड़ सकता हैं। यदि सीमित स्तर में भी यह करा जाए तो समाज का बहुत सुधार हो सकता है। इसकी न्यूनतम परिधि स्वयं की सुधारसेवा तक भी सीमित हो सकती हैं।

Thursday, October 14, 2010

कटुवचन बिच्छु के दंश के समान ही जहरीले एवं कष्टदायक होते हैं, यदि कटुवचन बोलने वाला निर्दोष ही क्यों न हो परन्तु सभी उसे ही दोषी ठहराते है और कोई उससे सहानुभूति नहीं रखता इसीलिए किसी को भी कटुवचन बोलने से परहेज़ करें और जीवन में किसी का भी दिल दुखाने से पहले सौ बार सोचें क्योंकि जिस प्रकार निकला हुआ तीर कमान में वापिस नहीं आ सकता उसी प्रकार कही हुई दुखदायी बात से आप पीछे नहीं हट सकते।

Tuesday, October 12, 2010

जीवन में सभी को सभी कुछ नहीं मिलता इसलिए दूसरों की निन्दा की परवाह किए बिना ही अपने पथ पर निरंतर चलते रहें। जीभ हरेक की अपनी है और उसे किसी को कुछ भी कहने की छूट हैं अतः अच्छा यही होगा कि उथले लोगों द्वारा कहे गए भले-बुरे पर ध्यान न दिया जाए। चाहे कोई हिमालय के समान महान ही क्यों न हो परन्तु उअस पर भी सिर ऊचाँ उठा के रहने एवं घमंडी होने का दोष लगेगा, समुद्र के सामान विशाल क्यों न हो,पर उसे भी खारा होने का कलंक झेलना ही पड़ेगा। जिस प्रकार काला चश्मा पहनने वाले को सब ओर काला ही नज़र आता हैं उसी प्रकार हर मनुष्य दूसरे को अपने ही तराजू में तोलता हैं और बुरा देखने वाले को कभी भला नज़र ही नहीं आ सकता।

Monday, October 11, 2010

माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और सुगंधित एवं घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।
माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और सुगंधित एवं घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।
माँ की बहुत कृपा हैं कि नवरात्र के दिन है आए जिसमें कि सारा वातावरण हो गया हैं भक्तिमय और घुल गया है हर तरफ प्रेम और संगीत जिससे हो गया है पवित्र जीवन और घर आगंन। हे माँ रहती दुनिया तलक यह शुभ दिन सभी के जीवन को महकाते रहें।

Friday, October 8, 2010

जीवन में जो भी काम करें वह ईश्वर की साधना समझ कर कीजिए, यदि स्नान करें तो लगे कि ईश्वर का अभिषेक कर रहें हैं, यदि राह में किसी व्यक्ति से बात करें तो उसे ईश्वर की असीम परमसत्ता का अंश समझ उस पर अपने पुष्प रूपी बातें एवं मुस्कान बिखेर कर उसका अभिनंदन परमात्मा के समान करें, यदि शयन करना हो तो इस प्रकार के भाव से करें कि हे! ईश्वर आपका हर काम मैं पूर्णता से कर पाऊँ इसीलिए मुझे इस निद्रा की परम आवश्यकता हैं। अर्थात जीवन का हर कर्म साधना से जुड़ा हो और जीवन प्रभू की आरधना बन जाए तथा ईश्वरमय हो जाए।

Thursday, October 7, 2010

यदि ईश्वर की कृपा न होती तो आप इस अमूल्य मानव जीवन को न पा सकते
जीवन में जो कुछ मिला हैं,जैसा मिला हैं उसे ईश्वर की परम कृपा समझ स्वीकार करें और हर पल परम पिता को उनकी दयालुता के लिए धन्यवाद करें, आदर्शवादी जीवन का यही तो मर्म हैं। इस पथ पर चलते रहने से न केवल आप ईश्वर की परम कृपा के अधिकारी होगें,मोक्ष को भी प्राप्त होगें।

Wednesday, October 6, 2010

यदि परमात्मा पर सच्चा एवं अटूट विश्वास हो तो जीवन में सुख आए या दुख सभी एक चलचित्र की भांति लगता हैं क्योंकि जो भी हम पर बीत रहा हैं वह हमारे स्वयं के संचित कर्मो का ही तो फल है।
अतः विचलित हुए बिना अपनी आस्था ईश्वर में लगाए रखें और जो घटित हो रहा हैं उसे होने दें यही प्रभु की रज़ा हैं सोच खुले दिल और शांत मस्तिष्क से हर नयी सुबह का स्वागत करें।

Tuesday, October 5, 2010

मानव शरीर की तरह ही मानव मस्तिष्क भी भगवान ने अद्‌भुत घड़ा है जिसे जैसा चाहो सिखा लो, जैसे विचार चाहे रख लो, जरूरत हैं उसे इस प्रकार सिखाने की कि केवल अच्छे विचार ही उसमें ओत-प्रोत हों और बुरे विचार स्वयं ही लुप्त हो जाएँ जो तभी मुमकिन हैं यदि विचारो में केवल ईश्वरीय शक्ति का ही निवास हो।

Monday, October 4, 2010

Live life to the fullest,make it meaningful by chanting Hare Rama Hare Krishna every second of your life and see the power of positive energy within you .

Friday, October 1, 2010

Live your life like a Sage in this world as it is easier to meditate upon God when one is alone in the forest but difficult if one is in the illusion of this world,so practice your mind this way that it only chants and remembers "The Almighty" all the time.