Friday, October 8, 2010

जीवन में जो भी काम करें वह ईश्वर की साधना समझ कर कीजिए, यदि स्नान करें तो लगे कि ईश्वर का अभिषेक कर रहें हैं, यदि राह में किसी व्यक्ति से बात करें तो उसे ईश्वर की असीम परमसत्ता का अंश समझ उस पर अपने पुष्प रूपी बातें एवं मुस्कान बिखेर कर उसका अभिनंदन परमात्मा के समान करें, यदि शयन करना हो तो इस प्रकार के भाव से करें कि हे! ईश्वर आपका हर काम मैं पूर्णता से कर पाऊँ इसीलिए मुझे इस निद्रा की परम आवश्यकता हैं। अर्थात जीवन का हर कर्म साधना से जुड़ा हो और जीवन प्रभू की आरधना बन जाए तथा ईश्वरमय हो जाए।

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