Monday, February 28, 2011

Never ever curse God for what you don't have in your life, instead thank him always for All that he has given you and for everything what you are Today!

Friday, February 25, 2011

जीवन में सभी को सभी कुछ प्राप्त नहीं होता यह परम सत्य हैं। हरेक के कर्म भिन्न है और उन्हीं के अनुसार मनुष्य को उसका जीवन मिला है, जितना मिला है, जो मिला है उसे भगवान का प्रसाद समझ ग्रहण कीजिए और अपना कर्म करते हुए हर पल ईश्वर को स्मरण कीजिए जिससे कि मन शांत हो और कर्म के गल्त होने का संशय मन से निकल जाए। जो कर्म किसी के भले के लिए किया जाता है उस कर्म में छिपी भावना का बहुत महत्व है, और दुरभावना से किए गए कर्म के लिए दण्ड पाने को भी मनुष्य को तैयार रहना चाहिए।

Thursday, February 24, 2011

Do not while away your time thinking about past it is over now
Do not while away your time thinking about future it is uncertain
Live in your present and always think of God to make your present happy and contended and shape your future with your present.

Wednesday, February 23, 2011

यदि कोई आपका अपना आपसे इतना दूर चला जाए कि उसके लौटने की कोई उम्मीद न हो तो उसके लिए इतना न रोएँ और शोक न करें कि उसे अपने नए जीवन से आपके पास दोबारा लौट के आना पड़े क्योंकि मौत तो एक ऐसी सच्चाई है कि जिसे कभी न कभी हरेक के जीवन में घटित होना है और जितना आप अपने प्रिय जन को बार-बार बुलाएँगे तो आत्मा (अनश्वर)अपने नए शरीर में स्थापित नहीं हो पाएगा और पुराने शरीर में भी वापिस नहीं आ पाएगा, इसीलिए अपने प्रिय जन की आत्मा की शांति के लिए उसे केवल प्रेम और शांति की तंरगे प्रवाहित करें, दुख और रुदन की नहीं ताकि आपके प्रिय जन की आत्मा अपने नए जीवन में स्थापित हो सके।

Tuesday, February 22, 2011

ईश्वर किसी से भी पक्षपात नहीं करते हरेक को उतना ही मिलता है जितने का वो अधिकारी है उससे ज़्यादा उसे मिल नहीं सकता क्योंकि उसके संचित कर्म उसे प्राप्त करने के अधिकारी नहीं बनाते और कितनी भी कोशिश कर ले मनुष्य को कभी उससे बेहतर जीवन नहीं मिल सकता जो ईश्वर ने उसके लिए निरधारित किया है।

Monday, February 21, 2011

जीवन को कितना सुदंर बनाना है यह इंसान के अपने हाथ में है किसी के भी कहने में न आकर केवल अपना कर्म करते जाएँ और बाकी सभी कुछ ईश्वर के हाथों में सौंप दें। क्योंकि मनुष्य के हाथ तो केवल वर्तमान है केवल ईश्वर ही भविष्य जानते हैं अतः सर्वस्व परमपिता को अर्पित कर दें फिर चाहे वह जो भी चाहें आपके हित में ही होगा एवं भगवान आपका योगक्षेम वहन करेगें यानि आपका भार स्वयं पर ले लेगें।

Friday, February 18, 2011

जीवन का अभिप्राय है कि ईश्वर की उपासना में ही अपना सम्पूर्ण समय व्यतीत करें। हर कार्य करते हुए केवल भगवान को ही सोचें और उनके नाम का ही जप करें, आप देखेगें कि हर कार्य सफल और आसान हो जाएगा। जो भगवान की शरण जाता है वो ही इस दुनिया के जंजाल में बिना फँसे उससे पार भी हो जाता है।

Thursday, February 17, 2011

ईश्वर किसी से भी पक्षपात नहीं करते हरेक को उतना ही मिलता है जितने का वो अधिकारी है उससे ज़्यादा उसे मिल नहीं सकता क्योंकि उसके संचित कर्म उसे प्राप्त करने के अधिकारी नहीं बनाते और कितनी भी कोशिश कर ले मनुष्य को कभी उससे बेहतर जीवन नहीं मिल सकता जो ईश्वर ने उसके लिए निरधारित किया है।

Wednesday, February 16, 2011

जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं यदि मन में इच्छा प्रबल हो और ईश्वर पर अखण्ड आस्था तो सभी मुश्किलें आसान हो जाती हैं और यही तो हर जीवन का मर्म है। सभी के जीवन में कोई न कोई परेशानी या मुसीबत तो है ही परन्तु उनसे डर के जीवन जीना तो कायरता के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जीवन है तो कठिनाइयाँ तो आती ही रहेंगी पर उन्हें सुलझाना मनुष्य और भगवान के हाथ है। अतः भगवान पर भरोसा रखकर अपनी सम्पूर्ण शक्ति से कार्य करें और परिणाम परम पिता परमात्मा को तय करने दें।

Tuesday, February 15, 2011

धर्म क्या है इसका आशय तो केवल यह है कि हर सामप्रदाय में जो कुछ भी श्रेष्ठ है, सुन्दर है और सत्य है उसका ही अनुसरण किया जाए क्योंकि हर धर्म अच्छा ही सीखाता है। हर एक व्यक्ति चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से सम्पर्क रखता हो हरेक में केवल ईश्वर ही तो निवास करते हैं तो फिर जाति-मज़हब को लेकर यह सारे फसाद क्यों?

Monday, February 14, 2011

Live Simply,
Love Generously,
Care Deeply,
Speak Kindly &
Leave rest to God.

Friday, February 11, 2011

यदि किसी से प्रेम ही करना है तो उनसे कीजिए जिन्हें सभी ने दुत्कारा है और जो सदा जीवन में प्रेम से वंचित रहे हैं क्योंकि प्यार वो अनुभूति है जो हृदय की चोट को भुला सकने में मदद करती है और मरहम का लेप भी लगाती है इसीलिए दीन-दुखियों को अपना प्रेम-सौहार्द अवश्य दें। उनसे प्रेम करना ही ईश्वर से प्रेम करना है।

Thursday, February 10, 2011

ज्यादातर लोग संकट आते ही घबरा जाते हैं और हाय-हाय करने लगते हैं परन्तु यह वही लोग करते हैं जिनकी भगवान में आस्था नहीं होती और उनके लिए कोई भी आपत्ति बहुत ही भयावह होती है। परन्तु ईश्वर में विश्वास रखने वाले हर आपत्ति को परमपिता का अपने बच्चों को सिखाने का एक तरीका है यह जनाते है और किसी भी विपत्ति से डरे बिना उससे जूझने में लग जाते हैं।

Wednesday, February 9, 2011

Happiness keeps you Young,
Trials keep you Strong,
Sorrows keep you Human,
Failures keep you Humble,
Success keep you Growing
But only God keeps you GOING !

Tuesday, February 8, 2011

जिस प्रकार एक बीज डालने से वो पहले पौधा और फिर वृक्ष बनता है उसी प्रकार हर मनुष्य का मूल केवल और केवल परम पिता परमेश्वर हैं। जब मनुष्य अपने इस मूल से विमुख हो जाता है तभी उसका जीवन अशांत और उथल-पुथल हो जाता है उसे सदा मृत्यु का भय लगा रहता है। परन्तु अपने मूल स्रोत ईश्वर से एकाकार होने पर मनुष्य के सभी डर मिट जाते हैं और उसे हर निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है यही सार्थकता है अपने मूल स्रोत से संबंध बनाए रखने की क्योंकि अंतिम संबंध तो उन्ही से जुड़ा रहेगा और सभी से बिछुड़ जाना है।

Monday, February 7, 2011

ईश्वर ही वे हैं जिन्हें पूर्ण पुरूष कहा जाता है, ईश्वर ही हैं जो परिपूर्ण हैं,उत्कृष्ट है। हम सभी अपूर्ण है और हमें पूर्णता केवल ईश्वर ही प्रदान कर सकते हैं और यही उत्कृष्टा प्राप्त करना ही तो बहूमूल्य मानव जीवन का लक्ष्य है जोकि केवल प्रभु की समीपता से संभव है। सच्चा संतोष एवं आन्नद कभी दुनियावी चीज़ो से प्राप्त नहीं होता। मन को सच्चे आन्नद से भर दे ऐसा सुख केवल ईश्वर के पास है और वो हमे केवल और केवल उपासना और साधना से मिल सकता है।

Friday, February 4, 2011

भौतिक सफलताएँ उतनी देर ही सुख देती हैं जब तक उनकी प्राप्ति नहीं होती जैसे ही वह प्राप्त हो जाती हैं उनकी महत्ता समाप्त हो जाती है। परन्तु आत्मिक प्रगति जिनके लिए ही हमें यह मानव शरीर मिला है चिरस्थाई रहती हैं और जीवन को श्रेष्ठ और सफल बनाती हैं और जो उपासना एवं साधना द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।

Thursday, February 3, 2011

पेट-प्रजनन तक ही मानव जीवन को सीमित रखने वाले यह बात भूल जाते है कि मनुष्य को यह बहूमूल्य जीवन इसीलिए मिला है कि वह स्वार्थ सिध्दी के लिए नहीं परमार्थ के लिए जीएँ। परमार्थ भले ही किसी भी स्तर पर हो उससे दूसरों का भला अवश्य ही होता है और भगवान जो सबके हैं व सबका ही सदैव हित ही चाहते हैं वो जब यह देखते हैं कि आपके किए गए कार्य से यदि किसी प्राणी का भला होता है तो ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं।

Wednesday, February 2, 2011

मनुष्य ज्ञान के ही कारण विकसित होता है, ज्ञान के स्वरूप को समझने के बाद ही उसे अहसास होता है कि उसकी सत्ता परमात्मा से भिन्न नहीं बल्कि वह स्वयं ही ईश्वर का अभिन्न अंग है। ज्ञान की उपल्बधि इसीलिए बहुत ही आवश्यक है, यही ज्ञान और विवेक ही तो है जो मनुष्य को पशु-पक्षियों से पृथक बनाते हैं और सद्‍ज्ञान के बलबूते पर ही मनुष्य परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग ढ़ूढ सकता है।

Tuesday, February 1, 2011

अपनेआप को पहचानना इतना आसान नहीं हमारी चेतन पहचान जब हमें समझ में आती है तभी हमें परमात्मा मिलते हैं, परन्तु वह पहचान कामनाओं और मोह-माया के जाल में जकड़ कर अपनी वास्तविकता भूल जाती है और बार-बार अपने जीवन लक्ष्य से विचलित हो जाती है। श्रद्धा एकमात्र ही वह प्रकाश है जो आत्मा को परमात्मा से मिलाती है और ईश्वर तक जाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। श्रद्धा ही वह माध्यम है जो हमारे मन और बुद्धि को भगवान से जोड़ती है।