Sunday, February 28, 2010

यह माँ का कर्तव्य हैं कि बच्चे को बचपन से ही ईश्वर की ओर प्रेरित करे,जो माँ ऐसा नहीं कर पाती वह अपूर्ण हैं एवं उसे माँ कहलाने का कोई हक नहीं क्योंकि उसने अपने बच्चे को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सीख नहीं दी।

Friday, February 26, 2010

जीवन को इस तरह जीओ कि हर दिन एक नया सवेरा नवजीवन प्रतीत हो और हर रात इस बात का डर न हो कि मृत्यु की आगोश में जाना नींद का ही तो प्रतीक हैं।

Thursday, February 25, 2010

देवता उन्हें ही कहा जाता हैं जो दूसरो को देते हैं, देने का अर्थ धन नहीं हैं। यदि आप चाहें तो दूसरो को बहुत कुछ दे सकते हैं, आप दूसरो को प्रेम दे सकते हैं,मिठास दे सकते हैं। किसी दूसरे के जीवन को दिशा दे सकते हैं, दूसरों की सेवा कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं। यानि देवता बनना चाहते हैं तो देना सीखिए।

Wednesday, February 24, 2010

अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु दिव्यं ददामि ते चक्षुः।
अर्थात हमारी आँखें दिव्य बनें और जो दिव्यता को देख सके। यह तभी हो सकता हैं यदि हम सर्वश्रएष्ठ देख सकें, शालीनता को तलाश सकें और जो कुछ भी इस संसार में दिव्य हैं,उस दिव्यता को देख सकने में सक्षम हो।

Tuesday, February 23, 2010

भोगा न भुक्ता वयमय भुक्ताः अर्थात भोगों को हम भोग नहीं पाए, लेकिन भोगों ने हमको भोग लिया। यानि यह दर्शाता हैं कि किसी भी मनुष्य की स्मपूर्ण इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होती परन्तु इन अतृप्त इच्छाओं के कारण ही हमें इस मृत्युलोक में बार-बार जन्म लेना पड़ता हैं एवं नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। अतः हम इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाए परन्तु इच्छाओं ने हमारा भोग कर लिया कहना अतिशोयक्ति न होगी।

Monday, February 22, 2010

Do you see God in blooming flowers?
Do you see God in sprinkling showers?
Do you see God in a smiling face?
Do you see God in a cherished pace?
Do you see God in sun and moon?
Do you see God in stars and rain?
God is everywhere in every bit of universe.
You just need your eyes to be open.
With eyes shut you can be just in the world of miseries.
So open your eyes to the world of enlightenment, God
गायत्री मंत्र में सात प्रेरणाएँ हैं- प्राणस्वरूप, सुखस्वरूप, दुःखनाशक, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक एवं देवस्वरूप सविता के स्वर्णिम तेज को हम अंतरात्मा में धारण करें।

Saturday, February 20, 2010

जीवन चलने का नाम हैं, जीवन कहीं भी रुकता नहीं है अपनी गति से चलता ही रहता हैं। ईश्वर का नाम सर्वदा इसे सुचारू रूप में चलने में मदद करता हैं।

Friday, February 19, 2010

परमात्मा सदा गतिशील है और सर्वथा अचल और स्थित भी।वे दूरातिदूर अनुभव होते हैं और अत्यंत समीप भी।इस समग्र सृष्टि में जो कुछ भी दॄश्यमान हैं,वह इन्हीं से परिपूर्ण है और इन्हीं में संव्याप्त भी।
ईशावास्योप्निषद ॥५॥

Thursday, February 18, 2010

जिस प्रकार पुत्र माता-पिता की छवि होता हैं उसी प्रकार हम सभी उस परम तत्व की प्रतिबम्बित छवि ही हैं अर्थात हम सभी प्राणी ईश्वर का अंश है और उसका परम स्वरूप हम अपने अतःकरण में महसूस करते हैं।

Wednesday, February 17, 2010

Ayam Atma Brahmm This self(Atma/Soul) is Brahmm
From: Mandukya Upanisad, Atharva Veda
Ayam, means this, means the consciousness that lies deep within an individual, the innermost core of the personality is same as Brahmm which is everywhere, visible or invisible. Means you and Brahmm are identical and you should find this identity.
चतुर्विंशतिवर्णेर्या गायत्री गुम्फिता श्रुतौ।
रहस्ययुक्तं तत्रापि दिव्यैः रहस्यवादिभिः॥
गायत्री संहिता, ८५
अर्थात वेदों में जो गायत्री चौबीस अक्षरों में गुँथी हुई हैं, विद्वान लोग इन चौबीस अक्षरों में गूँथने में बड़े-बड़े रहस्यों को छिपा बतलाते हैं।

Tuesday, February 16, 2010

प्राथना सरल,निश्चल एवं भावपूर्ण हृदय से ही संभव होती हैं।ऐसी प्राथना से हमारे जीवन के सभी श्रेष्ठ प्रयोजन पूरे होते है। प्रार्थना से गहन तृप्ति मिलती हैं एवं अंतःकरण के सभी अवरोध दूर होते हैं। सबसे आवश्क बात प्रार्थना से हमें मनुष्य जीवन के उद्‍देश्य का भान होता हैं जोकि परम तत्व में लीन हो जाना हैं।

Sunday, February 14, 2010

ज्ञान का सच्चा अर्थ हैं भगवान को बोधपूर्वक अनुभव करना यानि ईश्वर को होशपूर्वक हर पल अनुभव करना ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान हैं।

Saturday, February 13, 2010

हम सभी के अंदर एक आत्मा हैं,जो शांत है,कर्म की दॄष्टि से श्रेष्ठ हैं।परन्तु आत्मा और परमात्मा के इस रहस्य को समझने में बाधक हैं मनुष्य का अंहकार। अहंकार से प्रेरित व्यक्ति कभी यह समझ नहीं पाता कि उस निराकार परमात्मा से ही यह जगत है,सभी प्राणी है,हर छोटे से छोटे कण में परमात्मा सर्वत्र व्याप्त हैं। अतः आवश्यकता है कि इस अंहकार को त्यागकर हम "आत्मा"बन जाएँ, उस परब्रह्म के अंश बन जाएँ।यही मोक्ष हैं।

Friday, February 12, 2010

God has given us so much but we still keep asking for more as beggars instead we must try giving the gift of knowledge, gift of time, gift of serving others, gift of making others happy, then we will lack nothing.
जीवन निष्क्रिय और निरुद्‌देश्य नहीं होना चाहिए। इस बहुमूल्य जीवन का एक-एक क्षण अपने लक्ष्य की प्राप्ति में बिताए, लक्ष्य है अपने आराध्य (परमात्मा) से मिलन का और हमें हर पल उस ओर अग्रसर रहना हैं।

Thursday, February 11, 2010

वेदान्त कहता है कि इस संसार में तीन प्रकार के मूर्ख हैं प्रथम है वह जो व्यर्थ की आशा रखते है, दूसरे है जो व्यर्थ कर्म करते है और जो व्यर्थ का ज्ञान अर्जित करते हैं। अर्थात ईश्वर के अतिरिक्त किसी और से आशा रखने वाला मनुष्य मूर्ख है। जो कर्म ईश्वर को अर्पित नहीं किया वह व्यर्थ है एवं जो ज्ञान हमें ईश्वर की ओर प्रेरित न करे वह व्यर्थ हैं।

Wednesday, February 10, 2010

नर में ही नारायण हैं इसका यह ही अभिप्राय है कि ईश्वर इस सम्पूर्ण सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं और हर जीव में परम तत्व का अंश सम्माहित हैं। मनुष्य की आत्मा भी छ्ल-कपट से परे परमात्मा का ही अंश एवं रूप हैं।

Tuesday, February 9, 2010

श्रम के बिना मनुष्य जीवन निरर्थक हैं। बिना श्रम मनुष्य की कोई पूछ नहीं। ईश्वर ने यह जीवन मनुष्य को श्रम द्वारा सार्थक बनाने के लिए ही प्रदान किया हैं। अतः जब तक जीवित हैं कठिन श्रम कीजिए, इस कठोर श्रम (साधना) द्वारा पारब्रह्म परमेश्वर तक भी पहुँचा जा सकता हैं।

Monday, February 8, 2010

जीवन-मृत्यु का फैसला ईश्वर के हाथ हैं,यह कोई नहीं जानता कि कब उसकी मृत्यु आकर जीवन से उसका हाथ छुड़ा कर ले जाएगी, अतः हर पल, हर छिन उस परमात्मा को स्मरण रखें ताकि अंतसमय तक कुछ स्मरण रहे तो केवल परमात्मा का नाम,शेष सब यहीं रह जाता हैं।

Saturday, February 6, 2010

भगवान प्रसाद/पुष्प के बदले नहीं भावनाओं के बदले प्राप्त किए जाते हैं। भावना ऐसी होनी चाहिए जो सच्चाई की कसौटी पर खरी उतरे, इस कसौटी की परख मनुष्य के त्याग, बलिदान, संयम, सदाचार एवं व्यवहार से होती है।

Friday, February 5, 2010

God has given us so much in life and we are so blessed that sometimes we feel sorry for the ones who are not so blessed so take out some time everyday to thank God for all the blessings and this very precious human birth given by Him as a gift.
ॠतेन गुप्त ऋतुभिश्च सर्वैर्भूतेन गुप्तो भव्येन चाहम्‌।
मा मा प्रापत्‌ पाप्मा मोत मृत्युरन्तर्दधेअहं सलिलेन वाचः॥
(अथर्ववेद,१७/१/२९)
अर्थात सत्यकर्म और धर्माचरण से ही मनुष्य जीवन सुरक्षित रहेगा,इसलिए हम निष्पाप और यशस्वी बनें और सदैव उच्च ज्ञान प्राप्त करते रहें।

Thursday, February 4, 2010

मनुष्य जीवन को उत्कृष्ट बनाने में सबसे बड़ा योगदान हैं ईश्वर के नाम का। परमात्मा के पवित्र पावन नाम से ना केवल हमारा जीवन शुभ एवं शुध्द हो जाता है, हमारा मन प्रतिकूल परिस्थियों में भी आशावादी रहता हैं और बुरे विचार हमारे मन में नहीं आते।

Wednesday, February 3, 2010

This gift of life is the mercy of God and we can make Him proud by having mercy on other living beings.
जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु। परन्तु मृत्यु का अर्थ मुक्ति नहीं,मोक्ष नहीं। महापुरुषों ने सच ही कहा है कि "तन की मौत मन की मौत नहीं"। जिस तरह मनुष्य वस्त्र बदलता हैं आत्मा मृत्युउपरान्त शरीर बदलती हैं,परन्तु मोक्ष केवल परमात्मा की शरण में जाने से प्राप्त होता हैं। अतः पारब्रह्म परमेश्वर से सच्चा प्रेम एवं आस्था ही हमें मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।

Tuesday, February 2, 2010

भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम। यदि किसी दुःखी को देखकर मन में करूणा जागे,किसी लाचार को देखकर मन में उसकी मदद करने की भावना जागे,एवं भूले-भटके को देख उन्हें सही मार्ग पर चलाने की इच्छा जागे, तो यह हृदय ही सच्ची भक्ति के योग्य हैं। ईश्वर की सच्ची उपासना दीन-दुखियों को पर दया कर उनकी सेवा-सश्रुणा करना ही हैं।

Monday, February 1, 2010

Difficulties and hurdles not only makes one wiser but also makes to believe that sucess is somewhere near around.
परिस्तिथियाँ हमेशा हमारे अनुकूल नहीं होती, प्रयत्न द्वारा हम उन्हें अपने अनुकूल बनाते हैं। उसी प्रकार हमें अपने मन को इस तरह सिखाना होगा कि वह परम पिता परमेश्वर की माला में गुथे जाने के अनुकूल हो।